कविता

इकरार

आखिरी बारिश तक

भींगती रही तुम

मैं चुपचाप रहा

अँधेरे की ओट में

गीले ख़त

उठाये थे मगर

लफ्ज बिखरे थे इस कदर

एक “इकरार” को जोड़ने में जमाना गुज़र गया

-प्रशांत विप्लवी-

One thought on “इकरार

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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