कविता इकरार प्रशान्त विप्लवी 02/07/201403/07/2014 आखिरी बारिश तक भींगती रही तुम मैं चुपचाप रहा अँधेरे की ओट में गीले ख़त उठाये थे मगर लफ्ज बिखरे थे इस कदर एक “इकरार” को जोड़ने में जमाना गुज़र गया -प्रशांत विप्लवी-
बहुत खूब !