कविता : हे मुहब्बत !
हे मुहब्बत
जब तुम साथ हो
तब भी चैन नहीं पड़ता
जब तुम दूर हो
तब भी चैन नहीं पड़ता
जब तुम्हें पाता है
ख़ुशी के आँसू बहाता है
जब तुम्हें खोता है
दुःख के आँसू बहाता है
ख़ुशी के पल में भी
दुःख के पल में भी
तुम आँसू ही बाँटते हो !
फिर भी
दुनिया वाले तुझे प्यार से गले लगाते हैं
हमारे दिलों में
तुमने बनाया अपना राज
तुम्हीं हो इन हजारों दिलों का हकदार
कभी सताता है तूफ़ान बनकर
कभी सुहाता है सुनहरा फूल बनकर
जरा बता दो मुहब्बत
क्या जादू मचा रखा है तूने
कोई न चाहता छोड़ना तुम्हें
दुःख मिले या सुख मिले
तुम्हारे ही वास्ते
अच्छी कविता
बहुत भावपूर्ण कविता. इस तरह का लेखन जारी रखें.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना …..आपमें असीम संभावनाएं है नलिका जी