ग़ज़ल : बजती नहीं कोई झंकार जाते जाते
बजती नहीं कोई झंकार जाते जाते
टूटते हैं दिल के अब तार जाते जाते
वक़्त ए रुखसती हो चली अब तो यूँ
बस हो जाता तेरा दीदार जाते जाते
पिंजरे से पंछी पल भर में उड़ने को तैयार
टूटती हैं साँसे होता न इंतज़ार जाते जाते
सज़ जाती हिना गर महबूब के नाम की
शमा पा लेती परवाने का प्यार जाते जाते
साँसे उखड़ी हुई दिल बैचैन हुआ जाता है
नज़रों में आता अक्स तेरा करार जाते जाते
खुद से मुख्तलिफ हो तुझसे वफ़ा निभाई
कर जाता तसल्ली-ए-इज़हार जाते जाते
तीरगी बहुत है नूर ए जीस्त की दरकार भी है
दो घडी को ही ले आते तुम बहार जाते जाते
तुझसे मिलने को दिल है बेकरार जाते जाते
तेरे नाम से करती मैं सोलह श्रृंगार जाते जाते
……अंजना
padhte hi isey gaane ka man hone lgam,,,,,waah kamal likha hai aapne
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !