राजनीतिक पार्टियां राजनीति कैसे करती हैं और चुनाव कैसे जीतती हैं
चूंकि मैं कोई मनोवैज्ञानिक तो हूँ नहीं लेकिन फिर भी एक एक छोटा सा अध्ययन मैंने किया था
कुछ बच्चों को बुलाया जिसमे से कुछ चाँदी के चम्मच के साथ बाई डिफाल्ट पैदा हुए थे मतलब धनाड्य परिवार से थे, तो कुछ मध्यम वर्ग के थे और कुछ झोपडों मे रहने वाले गरीब घरों के बच्चे थे.
उनसे बातें करने के बाद पता चला कि
1. गरीब बच्चों को खिलौनों के नाम तक पता नहीं होते, देखना और खेलना तो दूर की ही बात है.
2. अमीर बच्चे हर तरह के खिलौने खेल कर तोड़ चुके होते हैं.
3. मध्यम वर्ग का बच्चा, जिसे हर तरह के खिलौने की जानकारी होती है, लेकिन उसे खरीद नहीं पाता, क्योंकि घरों मे आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती हैं
इन तीनों वर्ग के बच्चों की मनोदशा बड़े होने तक उसी तरह की बनी रहती है.
चुनावों मे पार्टियां भी इन तीन वर्गों पर खास ध्यान रखती हैं
चूंकि भारत मे मध्यम वर्ग के लोग अधिक हैं इसलिए उसे सपने दिखाए जाते हैं की “हम ये करेंगे वो करेंगे “(ध्यान रहे कि सपने दिखाने के दौरान “करेंगे करेंगे” शब्द का ज्यादा उपयोग होता है .)
बाद मे गरीब वर्ग के लोगों को सपने दिखाए जाते हैं …. उन्हें पहली बात पता ही नहीं होती कि नए संसाधन, देश की समस्याएँ क्या हैं ? गरीबी कैसे मिटेगी आदि आदि … इसलिए उन्हें चुनावों के दौरान पहली बार सपने देखना सिखाया जाता है और उन समस्याओं का समाधान अपनी पार्टी के रूप मे दिखाया जाता है.
और चाँदी के चम्मच वाले वर्ग के तो कहने ही क्या हैं ! ये लोग अधिकतर शासक वर्ग मे सम्मिलित होते हैं
तो समझ गए होंगे कि यह चुनाव का खेल क्या है : सपने दिखाओ …. सरकार बनाओ
इस बार भी बड़े बड़े सपने दिखाए गए हैं ….5 साल के कार्यकाल मे सच हो जाएँ तो अच्छा … वैसे भी पिछले 60 साल से तो सपने ही देखते आए हैं. समझ लेंगे कि इस बार भी सपना ही देखना नसीब मे लिखा था …. और अगर सपने सच हो गए तो कम से कम अगले 20 साल तक सरकार को सत्ता से हिला पाना असंभव है.
आपका विश्लेषण अच्छा है. पिछली सरकारों से बार-बार धोखा खाने के बाद आपको अभी तक विश्वास नहीं आया है कि मोदी जी की सरकार अन्य सरकारों से अलग है और ये जो कहते हैं वह करते भी हैं. सब कार्यों में समय लगता है. कम से कम एक साल देखिये, फिर आपको भी उन पर विश्वास हो जायेगा.
विश्वास तो है लेकिन समय समय पर चेताते रहना जरूरी है !!