कविता : ऐसे ही मार दिए गये
उसने जन्म के साथ ही आकाश की
ओर देखा , देखती रही और नापती रही
उसकी ऊचाई में छिपे गहराई का अनंत और शून्य तिलिस्म
उसने उड़ते देखा अपने ही समूह के अन्य
जीवों को और स्वयं को आकांक्षाओं से
भर लिया
कुछ दिनों के प्रयास के बाद उसने झटकाए
अपने पर और उड़ान भरी अपने सुनहरे ख्वाब की ओर
कुछ ही पल में वो एक निश्चित गोलाई में
अनवरत चक्कर काटने लगी
घर अब भी उसकी नजरो में महफूज रहा
पर इंसान की हैवानियत दुसरे घर उजाड़ने
में अधिक और अपना बसा लेना का हुनर
रखती है
इससे अनजान मासूम चिड़िया लौट रही
थी अपने घौंसले के जानिब
एक इंसान ने महज अपने निशानेबाजी
की परिपक्वता परखने के लिए
उसे घौंसले से कुछ ही अंतराल पर
प्रहार से मार गिराया
भयभीत होकर लौट गये सभी पेड़ के पक्षी
अपने घरों को सुना छोड़कर
ऐसे ही मर जाते है कुछ नादान यहाँ किसी के शौक शौक में
ऐसे ही मार दिए गये बहुत से नादान यहाँ शौक शौक में
एक और कविता गहरा अर्थ लिये.