पहला ख़त …
क्या ऐसी ही
होती है मुहब्बत … ?
ख्याल कागज़ पर
लिखने लगते हैं नाम
रंग आखों में उतर आता है
ज़िन्दगी चुपके -चुपके
लिखने लगती है नज़्म ….
आँखों की बेचैनियाँ
खूबसूरती के सबसे सुंदर शब्द बन
मुस्कुराने लगती हैं
रात बादलों की छाती पर
ओस कीबूंदें बन लिखती है गीत
ख़्वाबों में कोई सुना जाता है
बहते झरने की मीठी कल -कल
उम्र घूँट -घूँट पी जाती है
दीवानगी की सारी हदें ….
आज मैंने
सीने में छुपा ली है
सोहणी महिवाल की तस्वीर
चनाब आतुर है कोई घड़ा
उतर आये पानी में
आज मेरी कलम के सारे शब्द
टूटे तारे से मुराद मांगने
आसमां की ओर निकल पड़े है ….
बर्फ सी भीगी हवा
उड़ा ले गई है छाती से दुपट्टा मेरा
लोक गीतों का कोई स्वर
झड़ने लगा है हर सिंगार बन
चलो आज की रात
झील की गहराई में उतार दें
चाँद की सारी हँसी
और लिख दें एक दुसरे के नाम
मुहब्बत का पहला ख़त …. !
सरल शब्दों में बेहद सुन्दर कविता. बधाई, हीर जी.
हरकीरत जी , कविता बहुत ही अच्छी लगी , शाएद इस लिए कि मुझे आसान लफ्ज़ ही समझ में आते हैं किओंकि पंजाबी हिंदी ही समझ में आती है . और दुसरे मेरी बेटी का नाम भी हरकीरत है . मज़ा आ गिया . आप के सुन्दर अक्षरों की इंतज़ार आगे भी रहेगी .