चुनाव आ गए हैं फिर से, हालात बदलने वाले हैं
देखो अब कितनें लोगों के अंदाज़ बदलने वाले हैं
चुनाव आ गए हैं फिर से, हालात बदलने वाले हैं
कुछ झुकेंगे और कुछ अकड़ेंगे,
कुछ मानेंगे और कुछ झगड़ेगे,
वर्षों से घमंड से थे परिभाषित,
अब वो भी तो नाक को रगड़ेंगे,
जाने कितनें लोगों के, ख्यालात बदलने वाले हैं
चुनाव आ गए हैं फिर से हालात बदलने वाले हैं
अब नये नये हमदर्द मिलेंगे
अब नित्य नये दुश्मन होंगे
अब कई पुरानें रिश्ते टूटेंगे
अब नये नये गठबंधन होंगे
सत्ताधीशों के भी अब अल्फ़ाज़ बदलने वाले हैं
चुनाव आ गए हैं फिर से हालात बदलने वाले हैं
अपमान हुआ जो गत वर्षों में
सत्ता-मद ग्रसित हठबुद्धों से
पांच में खाना, कलम खून की
क्या जनता भूलेगी मुद्दों को
सरताज समझनें वालों के अब ताज बदलने वाले है
चुनाव आ गए हैं फिर से हालात बदलने वाले हैं
अब हाँथ में झाडू पकड़ोगे
फिर भी ना गणित पूरा होगा
अब और सहेगी ना जनता
अब सबका सपना पूरा होगा
अब मोदी आने वाला है, दिन रात बदलने वाले हैं
चुनाव आ गए हैं फिर से हालात बदलने वाले हैं
_________________अभिवृत अक्षांश
बढ़िया कविता. इसको चुनावों से ठीक पहले प्रस्तुत करना चाहिए. वैसे आज भी प्रासंगिक है. मैंने भी कई साल पहले चुनाव पर एक कविता लिखी थी, उसे खोजकर प्रस्तुत करूँगा.