ग़ज़ल : यूँ न मुझसे रूठ जाओ
यूँ न मुझसे रूठ जाओ, मेरी जाँ निकल न जाये
तेरे इश्क का जखीरा, मेरा दिल पिघल न जाये.
मेरी नज्म में गड़े है, तेरे प्यार के कसीदे
मै जुबाँ पे कैसे लाऊं, कहीं राज खुल न जाये
मेरी खिड़की से निकलता, मेरा चाँद सबसे प्यारा
न झुकाओ तुम निगाहे, कहीं रात ढल न जाये.
तेरी आबरू पे कोई, कहीं दाग लग न पाये
मै अधर को बंद कर लूं, कहीं अल निकल न जाये.
ये तो शेर जिंदगी के, मेरी साँस से जुड़े हैं
मेरे इश्क की कहानी, ये गजल भी कह न जाये.
ये सवाल है जहाँ से, तूने कौम क्यूँ बनायीं
ये तो जग बड़ा है जालिम, कहीं खंग चल न जाये.
—- शशि पुरवार
आप सभी सुधिजनो का बहुत बहुत धन्यवाद, आपने अपनी अनमोल प्रतिक्रिया से हमें नवाजा है . आभार
न झुकाओ निगाहे कहीं रात ढल न जाये….. बहुत अच्छी पक्ति लगी। गजल अच्छी है।
सुन्दर ,मोहक प्रस्तुति !
बहुत अच्छी ग़ज़ल
गजल अच्छी है.
बहुत अच्छी ग़ज़ल. इसमें सरल शब्दों में मन की भावनाओं को बखूबी प्रकट किया गया है. बधाई !