गीतिका….
उससे ही जहाँ गुलजार है
वह इतना बड़ा फ़नकार है
कण कण में दिखे उसका हुनर
पल पल वक्त की रफ़्तार है
है रमजान की पाकीज़गी
ढल जाओ अरुण, इफ़्तार है
मंजिल तो बहारों में रही
गुल का आज इन्तेजार है
धरती की तपन से ना डरो
सागर अब्र का आधार है
सब जाने निशा रहती नहीं
क्यूँ संजीदगी हर बार है
….ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत अच्छी ग़ज़ल, ऋता जी. आप इसी प्रकार लिखती रहें.
प्रोत्साहन हेतु बहुत आभार !!
मधु जी कविता अच्छी है……….इसी तरह लिखती रहो। वास्तव में वह बहुत बडा फनकार है उसकेे फन को समझ पाना इंसानों के बस की बात नही।
प्रोत्साहन हेतु बहुत शुक्रिया !!
मधु जी , कविता बहुत अच्छी है , यह भगवान् की ही कृपा है जो हम को सभ कुछ उपलभ्द है , यह हवा , यह फल फूल . फिर कियों ना हम ख़ुशी ख़ुशी इस जीवन का मज़ा लें और सभ मिल जुल कर शान्ति से रहें
प्रोत्साहन हेतु बहुत आभार !!