ढल गया रोमांस का चांद
कहते हैं वक्त का बवंडर किसी को नहीं बक्ख्शता, फिर वह अमीर हो या गरीब हो, बड़ा हो या छोटा हो, मशहूर हो या न हो, वक्त का पलड़ा जिस ओर भी करवट लेता है अपने संग न जाने कितनों को उड़ा ले जाता है और वो हंसी पल जो लौटकर वापस कभी नहीं आते वो पल बस कवि की कविताओं में, शायरों की शायरी में, कहानीकार की कहानियों में ही सिमट कर रह जाते हैं। इन्हीं लम्हों और पलों को ध्यान में रखते हुए एक गीत लिखा गया था और वह गीत था फिल्म ‘आपकी कसम’ का ‘जिन्दगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं आते’ ये गीत उन बीते पलों की पुष्टि करता सा प्रतीत होता है जो फिर कभी नहीं लौटते बस यादें बनकर हमारे जहन में बस जाते हैं। राजेश खन्ना उसी पल का नाम है जो गुजरने के बाद सिर्फ अपने चलचित्र में तो लौट सकता है लेकिन हकीकत में नहीं।
अपनी जवानी में चारों ओर हसीनों का मेला लगवाने वाला सिनेमाई चांद आज कितने लोगों को रोता छोड़ गया। रूपहले पर्दे को कब पता था कि एक चांद जो अमृतसर की जमीं पर 29 दिसम्बर 1942 को उतरा था वह कभी बिना किसी अमावस के यूं ही ढ़ल जाएगा। जतिन खन्ना से राजेश खन्ना की यात्रा का एक अपना ही सिलसिला रहा है। जो 24 वर्ष की आयु में फिल्म ‘आखरी खत’ से शुरू हुआ था।
1965 में एक प्रतियोगिता ‘आॅल इंडिया टेंलेंट कांटेस्ट’ जोकि फिल्मफेयर और यूनाइटडे प्रोड्यूसर्स के द्वारा आयोजित किया गया था में राजेश खन्ना हजारों लोगों में से इस प्रतियागिता के बेस्ट आठ में आने के बाद अंत में इसे जीत गए थे। और रूपहले पर्दे के अपने सुनहरे सफर की ओर चल पड़े थे।
24 वर्ष की आयु में राजेश खन्ना रूपहले पर्दे पर पहली बार आए थे और 1966 में चेतन आनन्द द्वारा निर्देशित ‘आखरी खत’ से अपने करियर की शुरूआत की थी परंतु 1969 में आई ‘आराधना’ के बाद से राजेश खन्ना ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आराधना के बाद राजेश खन्ना की आने वाली लगातार 14 फिल्में सुपरहिट रहीं जो अब तक का एक सर्वश्रष्ेठ रिकार्ड है।
अपने 40 साल के लंबे करियर में राजेश खन्ना ने कुल 163 फिल्मों में काम किया जिनमें से 128 फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई, 106 फिल्मों में उनका मुख्य रोल रहा साथ ही 22 फिल्मों में राजेश खन्ना ने दोहरी भुमिका के अतिरिक्त 17 लघु फिल्मों में भी काम किया। इनमें से मुख्य आराधना, आनन्द, हाथी मेरे साथी, महबूब की मेहंदी, आन मिलो सजना, कटी पतंग, राज, बहारों के सपने उनकी बेहतरीन फिल्मों मे गिनी जाती हैं।
जैसे-जैसे समय का पहिया आगे की ओर बढ़ता गया राजेश खन्ना भी कामयाबी कर सीढि़यां चढ़ते गए, उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए 14 बार तथा बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड के लिए 25 बार नामांकित किया गया। दोनों पुरस्कारों के लिए उन्हें कुल 39 बार नामांकन में तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फिल्म पुरस्कार 1975 में ‘आविष्कार’ के लिए, 1972 में ‘आनंद’ के लिए और 1971 मंे ‘सच्चा-झूठा’ के लिए मिले, इसके अलावा उन्हें चार बार बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड मिला। साथ ही 2005 में उन्हें उनके सिनेमा जगत को अविस्मरणीय योगदान के लिए फिल्म फेयर का ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ भी दिया गया।
इतनी शोहरत मिलने के बाद भी राजेश खन्ना का अंदाज उनके आखरी दिनों तक भी वही रहा, एक रोमांटिक एक्टर और एक मस्त मौला इंसान का, अपनी अदाकारी के बल पर ही राजेश खन्ना इतने ऊंचे मकाम पर पहुंचे थे, जिस मकाम पर आज की युवा पीढ़ी बिना किसी मेहनत के ही पहंुचना चाहती है। उनके अंदाज में, हर किरदार में वो जीवंतता दिखाई देती थी जो आज शुन्य मात्र है। फिर चाहे वह एक शराबी हो या एक मस्त प्रेमी, एक बुढ़ा बाप हो या एक कैंसर से पीडि़त मरीज हर किरदार में अपनी अदाकारी से वो जान फूंक देते थे। और लगता था मानो इस किरदार को करने वाला यह सब सह रहा है या सच मंे यह इसी के साथ घटा है जो फिल्म मंे हो रहा है। किसी भी किरदार को सच्चाई से करना राजेश खन्ना की हर फिल्म में नजर आता है।
उनके मूंह से निकला हर डायलाॅग लोगों पर अपनी छाप छोड़ता था। फिर चाहे वह ‘पुष्पा आई हेट टियर्स रे’ हो या फिर साहिर लुधयानवी के द्वारा लिखी गई नज्म़ हो जो ‘दाग’ फिल्म में राजेश खन्ना द्वारा अपने ही अंदाज में कही गई है उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है ं
‘इजाजतें शौहरतें चाहतें उलफतें
कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं
आज मै हूं जहां कल कोई और था
आज मैं हूं जहां कल कोई और था
ये भी एक दौर है वो भी एक दौर था’
उनकी अदाकारी उस स्तर की अदाकारी थी जिस स्तर पर कोई विरला ही पहंचु पाता है। उनकी अदाकारी आज भी उनके लोहे मनवा रही है।
कहते हैं राजेश खन्ना को डांस नहीं आता था मगर फिर भी उनकी हर एक अदा आज एक संबल बन चुकी है। लोग उनकी हर अदा को आज भी अपने आप में उतार लेना चाहते हैं। एक बार की बात है राजेश खन्ना अपनी किसी फिल्म के प्रमोशन के लिए एक समारोह में गए और अपने गले की माला उतारकर भीड़ की तरफ फेंक दी, और उस भीड़ ने माला से एक-एक फूल तो क्या उसकी एक-एक पत्ती तक नहीं छोड़ी, इतना ही नहीं राजेश खन्ना जहां भी अपनी गाड़ी से जाया करते या ठहरते थे वहां की लड़कियां उनसे मिलने के लिए हंगामा कर दिया करती थीं और तो और उनकी गाड़ी के शीशों पर लिप्सटिक से अपने होंठो के निशान बना दिया करती थीं।
इससे यह साफ जाहिर होता है कि उनके चाहने वाले उन्हें मिलने के लिए क्या नहीं करते होंगे। राजेश खन्ना जिस ओर भी निकलते थे उसी ओर लोगों की भीड़ उन्हें घेर लेती थी और उनकी एक झलक पाने को बेताब हो जाती थी। इतना प्रेम था लोगों को अपने सुपरस्टार से।
अपनी इतनी बड़ी फिल्मी पारी के साथ-साथ राजेश खन्ना ने पांच वर्ष की राजनीतिक पारी भी खेली इसमें वह नई दिल्ली से कांग्रेस के सांसद रहे इनका सांसद पद का कार्यकाल 1992-1996 तक रहा इसमें उन्होंने एक सांसद के तौर पर भी अपने आप को साबित किया और वह फिल्मों की भांति ही इस पारी में भी सुपरहिट रहे और लोगों के चहेते बने रहे परन्तु फिर भी एक कमी थी जो उन्हें खलती रहती थी तभी तो इतने लोगों के चहेते होने के बावजूद भी अपने आखरी दिनों में वह अपने आप को काफी अकेला महसूस करते थे। कहते हंै एक समय था जब राजेश खन्ना का फोन निरंतर बजता रहता था पर वह अपनी व्यस्तता के कारण उसे सुन नहीं पाते थे और एक समय ये था जब राजेश खन्ना अपने फोन को हाथ में लिए इंतजार करते थे कि कब फोन बजे और मैं अपने किसी फोन से बातें करूं।
अपने आखरी कुछ दिनों में राजेश खन्ना एक गुमनाम सी जिन्दगी जी रहे थे उनके सबसे करीबियों में जिनसे काका अपनी बातें शेयर किया करते थे उनमें उनके दामाद अक्षय कुमार और उनके कुछ मित्र ही थे, बाकी सभी से राजेश खन्ना ने जैसे नाता सा तोड़ लिया था।
शायद यही कारण था कि अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने शराब का भी सहारा लिया। डिंपल कपाडि़या के साथ उनका तलाक बहुत समय पहले ही हो चुका था, ये सदमा भी उन्हें और उनके जीवन को काफी हद तक बदल चुका था। उनकी बेटियां भी उनके साथ नहीं रहती थीं। इस तरह सभी को अपने जीवन से जाते देख कौन होगा जो तन्हा न होगा और यह तन्हाई रूपहले पर्दे के पहले सुपरस्टार को भी अपने अन्दर समा गई।
राजेश खन्ना के साथ हुए वाक्या को देखकर बस यही कहा जा सकता है कि यही जीवन है जो कभी तो हमें इतनी ऊंचाईयों पर पहुंचा देता है कि हम सबके चहेते बन जाते हैं और कभी हमें उस गर्त में ला खड़ा करता है जहां से निकलना एक बड़ी चुनौती बन जाती है और हम बस अपने में ही खोकर रह जाते हैं।
अंतिम दिनों में राजेश खन्ना का स्वास्थ्य काफी बिगड़ चुका था। उनके पेट मंे इंफेक्शन के कारण वह एक लंबे समय तक अस्पताल में भी रहे परन्तु उनके स्वास्थ्य में रत्ती मात्र भी सुधार देखने को नहीं मिला, शायद ईश्वर को यही मंजूर था कि एक हीरे को जकरनों की भीड़ से हटा देना चाहिए और यही हुआ। एक हीरा चमकना बंद कर चुका है और शायद अब कभी नहीं चमकेगा। पर उनकी यादें और उनकी चमक हमारे जहन में हमेशा ताजा रहेंगी। वो तो चले गए पर उनकी याद कभी हमसे दूर नहीं होगी। किसी ने कहा भी है कि
‘सभी आते जाते हैं दुनिया में पर
जो छोड़े चमक हीरा कहते उसे हैं’
18 जुलाई 2012 को ऐसी ही एक चमक छोड़ने वाला हीरा चमकना बंद हो गया और हमसे आंसू न बहाने का वचन ले गया।
-अश्वनी कुमार
अश्वनी कुमार जी , आप ने राजेश खन्ना जी की कहानी बहुत ही अछे ढंग से लिखी है . आप ने सही कहा वक्त किसी को नहीं बख्शता . यही बदकिस्मती है इंसान की . जैन्गीज़ खान ने एक छोटे से कबीले में से उठ कर एक मंगोल ऐम्पाएर खड़ी कर दी थी लेकिन जब वोह मरने के करीब था तो अपनी इस दुनीआं को देख कर रो रहा था . अपने आख़री दिनों में जिस को अपने परिवार और दोस्तों का साथ मिलता है वोह ही भगय्वान है .
सर पहले तो बहुत धन्यवाद, और आपकी बात से मैं सहमत हूँ, सही लिखा है आपने. एक बार फिर धन्यवाद…
अच्छा लेख, आपने राजेश खन्ना के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है.
बहुत आभारी हूँ गुरु जी आपका…धन्यवाद, सर मैं आपको गुरु कह सकता हूँ न???
भाई, कहने को तो आप मुझसे कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन मैं स्वयं को रचनाकारों/लेखकों का मित्र ही मानता हूँ.