एक महाराष्ट्र पुलिस के हवलदार से संवाद
कल पूरे परिवार के साथ घूमने गया था बारिश मे पूरे दिन मज़ा किया लेकिन वहीं पर एक पुलिस वाले अंकल मिले जो हमारे घर के पास वाले इलाके मे भी रहते हैं
मैंने पूछा- अंकल जी आपको तो कभी छुट्टी नहीं मिलती तो आज कैसे घूमने आ गए ??
बोले- यार तेरेको पता है आज मैं 13 साल बाद परिवार के साथ घूमने आया हूँ
मैंने पूछा – क्या 13 साल मे आपको छुट्टी नहीं मिली ?
बोले- भाई हर साल जब कोई त्योहार आते हैं तो हमारी मेहनत और बढ़ जाती है , 48-48 घंटे लगातार नौकरी करनी पड़ती है , नींद ठीक से नहीं मिलती , माँ , बाप, बीवी बच्चों के साथ समय नहीं बिता सकता हूँ जिस दिन छुट्टी पर रहता हूँ उस दिन तो पुलिस स्टेशन से जरूर फोन आ जाता है की जल्दी आओ एमरजेंसी है
पिछले 6 महीने से एक भी छुट्टी नहीं मिली है कि आराम कर सकूँ
मैंने पूछा- क्या आपके ही जैसी सब पुलिसवालों की दशा है ??
बोले- 90% पुलिस के हवलदार, संतरीयों की दशा ऐसी ही है !!
हम सब लोग परिवार के साथ मज़े कर रहे थे लेकिन जब भी उस पुलिस वाले चाचा जी की ओर देखता तो उनके चेहरे पर चिंता के भाव होते की आज तो घूम लिए वो ठीक है लेकिन अब कल से 10 अगस्त को आने वाले रक्षाबंधन के लिए सुरक्षा तैयारियां करनी होंगी
जब भी कोई दंगा होता है तो ये पुलिस वाले भी मार खाते हैं क्योंकि सरकारें इनके हाथ बांध देती हैं
जब भिवंडी मे दंगे होते हैं तो मरने वाले जगताप और गांगुर्डे जैसे पुलिस हवलदार ही होते हैं
जब आज़ाद मैदान मे दंगे होते हैं तब भी मार खाने वाले पोलिस वाले होते हैं (याद है न आज़ाद मैदान दंगों मे एक महिला कॉन्स्टेबल के साथ बलात्कार करने का प्रयत्न भी इन शांतिदूतों द्वारा किया गया था )
एक भी त्योहार परिवार वालों के साथ मनाने को नहीं मिलता क्योंकि त्योहार के समय भी ये लोग सुरक्षा मे डटे रहते हैं !!
नमन है उन पुलिस वालों का जो अपना पूरे जीवन को राज्य और जनता की सुरक्षा मे लगा देते हैं
बहुत सही लिखा है. पुलिस का कम कितना कठोर होता है यह करने वाला ही समझ सकता है.
आपने साधारण पुलिस वालों की पीड़ा का सही चित्रण किया है. वास्तव में पुलिस की ड्यूटी बहुत कठिन होती है.