गीतिका/ग़ज़ल

मर हम गए

जब दर्द हद से बढ़ गया, तब मर हम गए.

मरहम कहीं जब न मिला, तब मर हम गए.

भोर शब होने लगी बसमें नहीं कुछ भी.

जब हर कोई गुम हो चला, तब मर हम गए.

कोई बचा न हम कदम, कोई भी मुहब्बत.

ये दिल बहुत सहता रहा, तब मर हम गए.

होते रहे तब्दील हम दर्दों की अंजुमों से

साहिल का फिर भी न पता, तब मर हम गए.

  हो रही थी हर कहीं मुहब्बतें बरखा.

दिल रह गया सूखा खड़ा, तब मर हम गए.

-अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

6 thoughts on “मर हम गए

  • गुंजन अग्रवाल

    achhi gazal hai badhaayi

    • अश्वनी कुमार

      आदरणीय गुंजन जी मैं आभारी हूँ आपका जो आपने मेरी ग़ज़ल को पसंद किया.

  • धनंजय सिंह

    कविता अच्छी लगी

    • अश्वनी कुमार

      धन्यवाद दोस्त!!

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी गजल

    • अश्वनी कुमार

      गुरु जी शुक्रिया!!!

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