डा श्याम गुप्त के अगीत…..
डा श्याम गुप्त के अगीत
( अगीत -अतुकांत कविता की एक विधा है जिसने संक्षिप्तता को ग्रहण किया है | यह मूलतः पांच से १० पंक्तियों की अतुकांत रचना है | इसमें मेरे द्वारा विभिन्न प्रकार के छंद सृजित किये गए हैं | प्रत्येक छंद की बानगी यहाँ प्रस्तुत हैं|)
अगीत
.टोपी
वे राष्ट्र गान गाकर
भीड़ को देश पर मर मिटने की,
कसम दिलाकर;
बैठ गए लक्सरी कार में जाकर ;
टोपी पकडाई पी ऐ को
अगले वर्ष के लिए
रखे धुलाकर |
प्रकृति सुन्दरी का यौवन….
कम संसाधन
अधिक दोहन,
न नदिया में जल,
न बाग़-बगीचों का नगर |
न कोकिल की कूक
न मयूर की नृत्य सुषमा ,
कहीं अनावृष्टि कहीं अति-वृष्टि ;
किसने भ्रष्ट किया-
प्रकृति सुन्दरी का यौवन ?
माँ और आया
” अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर –
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला | ”
लयबद्ध अगीत
तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||
नव अगीत
प्रश्न
कितने शहीद ,
कब्र से उठकर पूछते हैं-
हम मरे किस देश के लिए ,
अल्लाह के, या-
ईश्वर के |
बंधन
वह बंधन में थी ,
संस्कृति संस्कार सुरुचि के
परिधान कन्धों पर धारकर ;
अब वह मुक्त है ,
सहर्ष , कपडे उतारकर ||
त्रिपदा अगीत
खडे सडक इस पार रहे हम,
खडे सडक उस पार रहे तुम;
बीच में दुनिया रही भागती।
क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित |
लयबद्ध षटपदी अगीत
पुरुष-धर्म से जो गिर जाता,
अवगुण युक्त वही पति करता;
पतिव्रत धर्म-हीन, नारी को |
अर्थ राज्य छल और दंभ हित,
नारी का प्रयोग जो करता;
वह नर कब निज धर्म निभाता ?
” जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || ”
त्रिपदा अगीत ग़ज़ल…
बात करें
भग्न अतीत की न बात करें ,
व्यर्थ बात की क्या बात करें ;
अब नवोन्मेष की बात करें |
यदि महलों में जीवन हंसता ,
झोपडियों में जीवन पलता ;
क्या उंच-नीच की बात करें |
शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमाएं ;
कुछ आदर्शों की बात करें |
शास्त्र बड़े-बूढ़े और बालक ,
है सम्मान देना, पाना तो ;
मत श्याम’व्यंग्य की बात करें
—— डा श्याम गुप्त, सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ २२६०१२
धन्यवाद ऋताजी एवं विजय जी……इस शैली में मैंने अपना महाकाव्य सृष्टि -ईशत इच्छा या बिगबेंग-एक अनुत्तारित उत्तर …एवं काव्य उपन्यास ..शूर्पणखा…लिखा है …एवं अन्य रचनाकारों ने अगीत संग्रह भी रचे हैं….
महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए आभार !!
बहुत ख़ूब, डा़़ साहब। आपने अगीत विधा से हमारे पाठकों का परिचय कराया इसके लिए आभार। यदि अगीत शैली का उचित उपयोग किया जाये तो यह किसी भी तरह छंद बद्ध शैली से कम प्रभावी नहीं है।