गीतिका/ग़ज़ल

एक गीतिका

बीती शब तेरी जो घर में चैन से सोकर
रात गुजरी तमाम वो मेरी तनहा रोकर

भुला दो तुम मुझे अब ये तो मुमकिन है
जीना मुमकिन नहीं मेरा तुमको खोकर

मिले मुझ को जमाने से धोखे इस कदर
के फ़ितरत सी बन गयी है खाना ठोकर

बूँद से भी पानी की बचाता हूँ ये चेहरा
वो छुअन न धुल जाये कहीं मुँह धोकर

व़फा की तुम से उम्मीद करूँ भी कैसे
मिलेगी कैसे व़फा खुद बेवफ़ाई बोकर

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...

4 thoughts on “एक गीतिका

  • अश्वनी कुमार

    बहुत सुंदर, आपको बधाई…

    • सुधीर मलिक

      हार्दिक धन्यवाद अश्वनी कुमार जी…

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

    • सुधीर मलिक

      आदरणीय विजय जी पसंद करने के लिये सादर आभार…नमन

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