तोड़कर आईना नारी
तोड़कर आईना शर्मशार आज नारी है,
हाथों के स्पर्श से डरती आज नारी है।
मर्मस्पर्शी भावना कोमल हृदय धारी है,
दर्द की पीड़ा अपने हृदय में उतारी है।
तोड़कर आईना शर्मशार आज नारी है।
श्रृंगार है शोभा जिसकी, दुर्भावना की मारी है,
कन्धे से कन्धा मिलाती, र्दुभावना की मारी है।
रूप कुदरत से मिलता, र्दुभावना की मारी है,
र्दुभावना लोगों की पीड़ा हृदय में ही धारी है।
तोड़कर आईना शर्मशार आज नारी है।
प्यार का सागर हृदय में, मातरूप धारी है,
स्नेह का बन्धन हृदय में, बहना प्यारी है।
जीवन चक्र का पहिया, पत्नी सुकुमारी है,
स्नेह सिंचित सदा रहती, बेटी दुलारी है।
तोड़कर आईना शर्मशार आज नारी है।
हाथों के स्पर्श से डरती आज नारी है।
savita ji v vijay singhal ji protsahan ke liye dhanyvad
सुन्दर कविता
बहुत सुन्दर कविता एवं उसके भाव