तुम मुझ पर विश्वास करो
धर्म-कर्म के मर्म को छोड़ो, ….प्रेम का मत उपहास करो
प्रेम किया है तुमनें तो प्रिय,…. प्रेम का बस आभास करो
मैं कृष्ण नहीं बन पाऊंगा, ….यदि तुम राधा बन न सकीं
मैं बस तुम पर विश्वास करूँ, तुम मुझ पर विश्वास करो
तुम मेरे मन की राधा,..… प्रिय तुमसे प्रेम का बन्धन है
मेरा हृदय तुम्हारा है प्रिय,…..हृदय तुम्हारा मेरा मन है
प्रियतम प्रेम को प्रभु समझो, …प्रभु का ही एहसास करो
मैं बस तुम पर विश्वास करूँ, तुम मुझ पर विश्वास करो
अनुरंजन के बंधन को,….. प्रियतमा सहर्ष स्वीकार करो
प्रेम को सोचो, प्रेम को पूजो,… मुझसे ही बस प्यार करो
आकर मेरे जीवन में प्रिय, ..विरह को तुम उल्लास करो
मैं बस तुम पर विश्वास करूँ, तुम मुझ पर विश्वास करो
इस पार न यदि मिल पाए तो, उस पार मिलेंगे हम दोनों
है कौन प्रेम को बांध सका, क्योँ पथ से हिलेगें हम दोनों
हर लो जग का हृदय तिमिर, प्रेम का अपने प्रकाश करो
मैं बस तुम पर विश्वास करूँ,तुम मुझ पर विश्वास करो
______________अभिवृत | कर्णावती | गुजरात
बहुत सुन्दर कविता । प्रेम का आधार ही विश्वास है। जहाँ विश्वास नहीं, वहाँ प्रेम नहीं हो सकता।
आपका हार्दिक आभार गुरुदेव