कविता

प्रियतम मैं भगवान् ही हूँ

ब्रम्हा, विष्णु, महेश हूँ मैं, ..अब मैं कृष्ण महान ही हूँ

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,  प्रियतम मैं भगवान् ही हूँ

 

अब सारे कर्म सकर्म बने, प्रिय कोई द्वेष विकार नहीं

हर ओर मात्र तुम्हीं दर्षित, तुम सा प्यारा प्यार नहीं

उद्धार हुआ तुमसे मिलकर, मैं अब गीता ज्ञान ही हूँ

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,  प्रियतम मैं भगवान् ही हूँ

 

जन जन में है छवि तुम्हारी, शीश स्वयं झुक जाता है

काम, क्रोध, लोभ का रथ भी देख तुम्हें रुक जाता है

सुधार हुआ तुमसे मिलकर, अब मैं भी सम्मान ही हूँ

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,  प्रियतम मैं भगवान् ही हूँ

 

तुमसे ही तो सत्य मिला है,  हृदय मेरे उल्लास सा है

तुमने मुझको पूज्य बनाया, ये प्रेम मेरा विश्वास सा है

साकार हुआ तुमसे मिलकर, अब मैं भी संज्ञान ही हूँ

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,  प्रियतम मैं भगवान् ही हूँ

 

 

2 thoughts on “प्रियतम मैं भगवान् ही हूँ

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !! प्रेम ही ईश्वर है. जो प्रेम नहीं कर सकता, वह आस्तिक नहीं हो सकता.

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