कविता

गीतिका

जीवन है एक सुंदर सपना
लगता यहाँ हर कोई अपना 
कभी हँसाती कभी रुलाती 
कभी दिखाती प्यारा सपना 
जैसा भी प्रभु का दिया है
भोग रहे है मान कर अपना 
नही शिकायत इष्ट देव से 
करते सदा उनकी वन्दना 
आराध्य ही पार है लगाते 
आराधना ही ध्येय अपना

शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

6 thoughts on “गीतिका

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शांति बहन , कविता अच्छी है . यह जीवन सुन्दर तो है ही, दुःख सुख सब साथी रहते हैं . अगर दुःख को भी जिंदगी का अहम् हिस्सा मान कर चलें तो सब सुख ही सुख है . सच्चाई यह है कि इस संसार से कोई जाना नहीं चाहता . कुछ लोग गरीबी में भी संतुष्ट रहते हैं , कुछ करोडपति भी अताम्ह्त्य करते देखे गए हैं . अगर भगवान् पर सब छोड़ दें तो मज़े ही मज़े हैं .

    • शान्ति पुरोहित

      ji gurmel bhai sahb aap bja frma rhe ho

  • शान्ति पुरोहित

    विजय कुमार भाई जी कविता ठीक नही लगी क्या ?

    • विजय कुमार सिंघल

      बहिन जी, बुरा न मानें. कविता ठीक तो लगी है, पर आपकी दूसरी कविताओं की तुलना में कुछ कम है. आप लिखती रहिये.

      • शान्ति पुरोहित

        जी विजय कुमार भाई जी

  • विजय कुमार सिंघल

    ठीक !

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