प्रेम और आग
विश्वभर में एक भारत
जीता अनेक विविधताओं संग
नापाक इरादे रखने वाले
खुद को कहते हैं
पाक के रखवाले
सीमा पर बरसाते
नये-नये आग के रंग
भारत करता प्रेम कि वर्षा
फिर भी नहीं बुझती
नापाक की द्देष और ईर्ष्या
अब नीर ना बहेगा
अब प्रेम को
भारत ना तरसेगा
बहुत कर लिया प्रेम वार्ता
तुम ना सुधरे
तो अब कौन सुधरेगा?
तुम आग बरसाना बंद कर दो
क्योंकि
आग से आग ही बरसेगी …..
अच्छी कविता है . अगर भारत कश्मीर भी दे दे तो भी आग बरसती रहेगी . जिस धर्म की बुनिआद ही आग पर हो उस पर आशा रखना ही मुर्खता है . हमारी हकूमत को शान्ति का अलाप बंद कर देना चाहिए .
अच्छी कविता संगीता जी, आगे भी ऐसी कविताओं की आशा है.