सामाजिक

माँ के लिए………

माँ …के लिए ——

माँ, ईश्वर की सबसे श्रेष्ठ रचना है | हम जब भी अपनी माँ को पुकारते है तो वाणी में श्रद्धा और कृतज्ञता भर जाती है | माँ पुकार सुन कर तुरंत हमे अपने स्नेहांचल में छुपा लेती है| माँ की महिमा अपार है| जब हम दुःख में होते है तो परमात्मा को नहीं माँ को ही याद करते है | माँ – करुणा,प्रेम और त्याग की धारा है| एक बच्चे के लिए माता का स्वरूप पिता से बढ़कर है ; क्योंकि वो उसे गर्भ में धारण करती है पालन पोषण भी करती है | जिस क्षण शिशु का जन्म होता है उसी क्षण माता का भी जन्म होता है| पर हम सब ये भूल जाते है कि माँ कितना कष्ट सहन करती है| हालांकि ये भी सत्य है कि शिशु जन्म से ही औरत माँ बनकर दुनिया का सबसे बड़ा और अमूल्य सुख भोगती है | माता के लिए उसके बच्चे से बढ़कर कोई सुख बड़ा नहीं होता है|
पिता से पहले माता का ही नाम बच्चा लेता है | माता की सच्ची पूजा तो बच्चो का सचरित्र होने में है| माँ तभी खुश होती है जब उसका पुत्र यशस्वी हो | पुत्रिया तो दो वंश को अपने गुण से महकाती है | अपने शिशु के मूक कंठ को माता ही भाषा के बोल प्रदान करती है | इसलिए संसार के प्रत्येक कोने में अपनी भाषा को ‘मातृभाषा” कहा जाता है|
आदि शंकराचार्य जी ने माँ के अलावा कभी किसी की सत्ता स्वीकार नहीं की|सांसारिकता से सम्बन्ध ना रखने वाले आदि शकंराचार्य जी भी माँ की भक्ति और माँ का त्याग नहीं कर सके थे|  हमारे देश में तो नदी, तुलसी  और गाय को भी माता के समान पूजा जाता है |
पर आज के युग में माता के प्रति भाव भिन्न हो गये है| ये तो सर्वविदित ही है कि माता से पहले पिता ये संसार छोड़ कर जाते है;तब पीछे से पुत्र -पुत्रवधू स्वार्थ और सुख-सुविधाओ के वशीभूत हो कर माता को या तो नौकरानी की तरह रखते है या वो अकेली एक कोने में रहने को मजबूर होती है | जिस पुत्र को अपना रक्त पिलाकर,अपना समस्त सुख-दुःख त्याग कर बड़ा करती है ; वही पुत्र माँ को उनकी असक्त अवस्था में बोझ तुल्य समझने लगता है |
माँ सब कुछ बिना बताये ही जान लेती है अपने बच्चो की आँखे देखकर ही उनके मन की बात जान लेती है। उनका भूत ,भविष्य और वर्तमान की चिंता में अपने को सहर्ष खपा देती है।
माँ ! तुझे कोटि -कोटि प्रणाम ! शत -शत नमन !
शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

5 thoughts on “माँ के लिए………

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शांति बहन , आप का लेख बहुत अच्छा है , इस में कोई दो राए तो हो ही नहीं सकती कि माँ जो करती है बाप भी ऐसा नहीं कर सकता . ऐसा तो जानवरों में भी है . मैं एक किसान का बेटा हूँ और गाए भैंसे हमारे घर होती थी और जब भी गाए नए बछड़े या बछड़ी को जनम देती थी तो पास जाने से हम को मारने दौड़ती थी और अपने बच्चे को हाथ नहीं लगाने देती थी , फिर सोटी दिखा कर हम उन को गुड़ खिलाते थे और बछड़े को खिलाते थे . गाए अपने बछड़े को चाट चाट कर इतना सुन्दर बना देती थी जैसे शैंपू से नहाया हो और ब्रश से साफ़ किया गिया हो . बंदरों में तो इतना पियार होता है अपने बच्चों से कि अपने साथ लिए फिरती हैं . जब लोग माओं के साथ बुरा विवहार करते हैं उन के साथ भी बुढापे में यही होता है . हम तीन भाई थे , हमारी माँ कभी अफ्रीका बड़े भाई के साथ रहती थी , कभी हमारे यहाँ और कभी आस्ट्रेलिया छोटे भाई के साथ . वोह हम पर रूल करती थी और उस के रूल पर ही हम को ख़ुशी मिलती थी . वोह बहुत खुश मिजाज़ थी . अब वोह इस दुनीआं में नहीं है लेकिन उन की याद हर दम आती है .

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत अच्छा कमेंट, भाई साहब.

    • शान्ति पुरोहित

      आदरणीय गुरमेल भाई साहब मेरी माँ भी तीन साल पहले हमे छोड़कर चली गयी कभी भी नहीं भूल सकती माँ को

  • शान्ति पुरोहित

    धन्यवाद विजय भाई जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख, बहिन जी. मैं इससे अक्षरशः सहमत हूँ. माँ से बड़ा संसार में कोई नहीं है. उसका स्थान कोई नहीं ले सकता.

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