जिंदगी
नहीं जो जिंदगी में साज़-ए-तरब
तो सैलाब-ए-गम भी मंजूर है हमें ,
नहीं जो छाया नसीब किसी शजर की
तो धूप में तपते पांव भी मंजूर है हमें ,
नहीं जो मय्यसर साथ तेरा बख्त-ए-रसा
तो बज़म-ए-ख्याल में साथ मंजूर है हमें ,
नहीं कबूल दयार-ए-गैर का मोती भी
अपनी ज़मीं का कंकर भी मंजूर है हमें ।
प्रिया
साज-ए-तरब – खुशी का साज़
शजर – पेड़
बख्त-ए-रसा – सौभाग्य
बज्म-ए-ख्याल – ख्यालों की महफिल
दयार-ए-गैर – परायी धरती
बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रिया
शुक्रिया दी
ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग बहुत है, जो खटकता है. वैसे आपके उनके हिन्दी अर्थ दे दिए हैं यह अच्छी बात है. इनसे ग़ज़ल समझ में आ जाती है.
शुक्रिया , इसलिये ही हिंदी में उनका अर्थ लिखा विजय जी