गीतिका/ग़ज़ल

जिंदगी

नहीं जो जिंदगी में साज़-ए-तरब
तो सैलाब-ए-गम भी मंजूर है हमें ,

नहीं जो छाया नसीब किसी शजर की
तो धूप में तपते पांव भी मंजूर है हमें ,

नहीं जो मय्यसर साथ तेरा बख्त-ए-रसा
तो बज़म-ए-ख्याल में साथ मंजूर है हमें ,

नहीं कबूल दयार-ए-गैर का मोती भी
अपनी ज़मीं का कंकर भी मंजूर है हमें ।
प्रिया

साज-ए-तरब – खुशी का साज़
शजर – पेड़
बख्त-ए-रसा – सौभाग्य
बज्म-ए-ख्याल – ख्यालों की महफिल
दयार-ए-गैर – परायी धरती

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

4 thoughts on “जिंदगी

  • उपासना सियाग

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रिया

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रिया दी

  • विजय कुमार सिंघल

    ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग बहुत है, जो खटकता है. वैसे आपके उनके हिन्दी अर्थ दे दिए हैं यह अच्छी बात है. इनसे ग़ज़ल समझ में आ जाती है.

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रिया , इसलिये ही हिंदी में उनका अर्थ लिखा विजय जी

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