गीतिका/ग़ज़ल

मोहब्बत इक खजाना है!

 

के अक्सर सोचते है हम, मोहब्बत इक खजाना है.

खजाना जब था मोहब्बत, जमाना वो पुराना है.

 

बदल रही है चाहतें, बदल रही है मोहब्बत.

आज हर कोई दुनिया में, खुद में ही सयाना है.

 

जिसे गाते थे याद करके, सुकून मिलता था हमें.

सीने पर लोबान रखकर भुलाया वो तराना है.

 

वो माँ जो रूठ जाती थी, मेरी शैतानियों आगे.

नहीं रही है संग मेरे, मगर उसे मनाना है.

 

चले बाज़ार की तरफ, किस्मत खरीदने को हम.

नहीं बिकती है ये किस्मत, खुदी को ये बताना है.

 

ज़माने से छिपा लिया था सारा ग़म, मुझे मिला.

ज़माने से नहीं तुझे ये अपने आप से छिपाना है.

 

“आशू” सता लिया बहुत, कितनों को अब सताएगा.

मेरी किस्मत कहे मुझसे मुझे, तुझे सताना है.

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

One thought on “मोहब्बत इक खजाना है!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल

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