मां का आंचल-मां का आंचल— मौन
दिवाना पर प्यार का प्यासा,
उनकी आंखों में खोया हुआ,
बस ढूढता हूॅ प्यार का तिनका,
जो उनकी आखों में चुभकर,
जाने कहां पर खो गया।
पलकों को ऊपर उठाकर,
नीचे की ओर थोड़ा सा खींचकर,
जोर से फूंक मारकर,
की एक कोशिश निकालने की,
निकल गया पूछा, हां निकला,
अब जाकर आराम मिल गया।
ऐसा ही तो प्यार करती है वो,
मेरे लाख मना करने पर भी वो,
एक निवाला डाल देती है,
कह कर कि चन्दा मामा का हिस्सा,
सुला देती है थपकी देकर,
मेरे लाख मना करने पर भी।
कहां मिलेगा ऐसा प्यार,
एक ही जगह है संसार में,
मां का आंचल-मां का आंचल। — मौन
बहुत अच्छी भावनाएं. बढ़िया कविता, मौन जी.
दिल को छूती रचना