कविता

कविता : खुरदुरा प्रेम …

मैँ धो देना चाहती हुँ
अपने सारे गम
रंजिश व तपिश
बदन की !
उस शावर के नीचे
और उस मोटे
खुरदुरे तौलिए से
रगड़ कर
साफ कर देना चाहती हूँ
काई सी जमी
उस प्रेम को
जिसमेँ उग आए हैँ
कई कुकुरमुत्ते
अनचाहे अनजाने . . .

बोना चाहती हुँ
उसमेँ
कई सारे गुलाब
जिसने काँटे की चुभन को
सह कर भी
सीखा है जीना . . .

बन जाना चाहती हुँ
एक निश्छल मुस्कान
उस अबोध बालक की तरह
जिसने न कभी जाना
गम ए जिन्दगानी
काश
कि हम सब बच्चे होते
न होती दुनियादारी
न ये होशियारी
और
कलाकारी!!!

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

3 thoughts on “कविता : खुरदुरा प्रेम …

  • सीमा जी कविता बहुत अच्छी लगी . खुरदरा प्रेम , वाह ! किया सिरलेख है .

    • सीमा संगसार

      बहुत बहुत धन्यवाद, भमरा जी.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, सीमा जी.

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