उपन्यास अंश

लघु उपन्यास : करवट (तीसरी क़िस्त)

अगली सुबह रमुआ को लेकर धनुवा दीवानपुर प्राइमरी पाठशाला पर पहँुचा तो प्रधानाचार्य तिवारी जी से सीधे बात हुई। तिवारी जी ने धनुवा के साथ चपरासी को कक्षा तक छोड़ने के लिए भेजा और धनुवा को वापस घर जाने के लिए कहते हुए अपने कक्ष में चले गये। धनुवा बेटे को लेकर कक्षा तक पहँुचा तो वहां पर गुरु जी पढ़ा रहे थे। धनुवा रमुआ को गुरु जी के पास सौंपते हुए बोला- ‘गुरु जी, ठाकुर साहब के असीस से मोरे रमुआ के पढ़ै केर भाग जाग गइल बा, कौनौ बात क शिकायत होइ त हमके याद करिह। बेटवा के हमहने त रमुआ गोहराइला, पाठशाला में आप रामकुमार धई देईन।’ इतना कहते हुए धनुवा वापस घर की ओर चल पड़ा और गुरु जी सब बच्चों को पढ़ाने में व्यस्त हो गये। घर पर खाना खाकर ठाकुर साहब के खेतों की ओर चल पड़ा।

एक भोर से गोधूलि, गोधूलि से संध्या, फिर रात और फिर वही चिर परिचित भोर के तारे के बाद सूरज की लाली जगाने आती रही, इस तरह दिन पर दिन बीतने लगे। रामकुमार हर साल अपनी पाठशाला में उत्तम अंकों में साल दर साल कक्षाओं को पास करने लगा। प्रधानाचार्य तिवारी जी और गुरु जी की नजरों में छाने लगा और सभी का प्रिय हो गया। ठाकुर राजेन्द्र सिंह के कानों में जब रामकुमार की तारीफ पड़ती, तो उन्हें अपने फैसले पर गर्व होता।

धीरे-धीरे रामकुमार ने अपने गांव के गरीब बच्चों को भी पढ़ाना शुरू कर दिया कमाल तो तब होने लगा, जब उसके पास पढ़ने वाले बच्चे भी स्कूल में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते थे। वह धीरे-धीरे होने वाली इस छोटी आय से अपनी किताबों की व्यवस्था करने लगा। पढ़ाई की लगन और ठाकुर साहब के नाम की कीमत को पहचान कर उसने हाई स्कूल और फिर इन्टरमीडिएट में भी अपने जिले के सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्र के रूप में स्थान बना लिया। ठाकुर राजेन्द्र सिंह ने रामकुमार, धनुवा और रधिया को अपने घर पर बुलाया। उन्होंने अपनी खुशी को जाहिर करने के लिए पहले से मिठाई मंगवा रखी थी। अब रामकुमार को मिठाई खिलाते हुए कहा- ‘अब तुमको डाक्टर बनना है, क्योंकि तुम्हारे बापू का यही सपना है और मेरी भी यही मर्जी है। तुम्हारी क्या इच्छा है?’

धनुवा ने कहा- ‘ठाकुर बाबू रामकुमार तो आप की सेवा में हमेशा से लगा है, चाहे बापू के साथ में पानी भरने की बात हो, चाहे आप के सपने को साकार करने की बात हो। ठाकुर बाबू आप ही रामकुमार के भगवान हैं।’

रामकुमार ने कहा- ‘ठाकुर साहब, मैं आप के हर सपने को पूरा करके दिखा दूंगा और इसको मैं पूरी ईमानदारी और वफादारी के साथ पूरा करूंगा।’

ठाकुर साहब ने धनुवा से कहा- ‘देख तोहार लरिका अब हमहने की इज्जत बन गईल बा। अब हमहूं ठान लिहै हई कि ओकराकेेे डाक्टर बनावल जाई।’

धनुवा खुश होकर ठाकुर साहब के पैरो को पकड़कर बोला- ‘आप हमरे गँवार बेटवा के जिन्दगी बना दिहले हवा, अब रमुवा सगरे गांव जवार के बेटवा बन गइल बा। रमुवा, तू इ बात के मान रखिह बाबू। ठाकुर बाबू के आसीस क मान राखे के बा। आज हम बूझली कि धनुवा पानी भरके नाम कमउले बा, बेटवा ठाकुर बाबू के असीस से डाक्टर बन के नाम करी।’

बेटे के साथ रधिया और धनुआ ने घर आकर अपने बेटे की बलईया उतार के किसी की नजर न लगने की दुआ देते हुए गले से लगा लिया। खुशी से भर के उसने अपने घर से चीनी भरी कटोरी और लोटा भरके पानी दे करके कहने लगी- ‘ले बेटवा तोहरे नाम कमउले के खुशी में मीठा खा के पानी पी ल।’

अभी कुछ ही दिन बीते थे, रात के अपने दामन में से फिर पौ फटने को थी। धनुवा ने रधिया को आवाज लगाई- ‘रधिया अब उठ जा, भोर होे गईल बा, रमुआ का कपड़़ा रख द, दाना पानी ठीक-ठाक करके तैयार कर द। हमहु जाई नन्दुआ से बैलगाड़ी लाके सानी-पानी करके तैयार कर देई ताकि जात बेरिया के कौनो परेशानी न हो पावे।’ रामकुमार को उठने को कहके धनुवा चल दिया, आज एक बार रमुआ का जीवन फिर से करवट ले रहा था।

सूर्य अपने सातों घोड़ों के साथ आसमान को छूने की फिराक में था और इधर रामकुमार भी स्नान करके कुंए से पानी की बाल्टी भरकर लाया और बाल्टी को दरवाजे पर रखकर कपड़ा पहनने कमरे में चला गया। उधर धनुवा सफेद रंग के कुर्ता, धोती और कन्धे पर गमछा डालकर, हल्के भूरे रंग के बैलों की जोड़ी में बैलगाड़ी सजाए हुए ले कर दरवाजे पर आ पहँुचा। रमुआ बैलगाड़ी पर बैठते ही अपने पिताजी से बोला- ‘बाबू हमहने के पहिले गांव देवता के धाम पर माथा टेके के बा, फिर ठाकुर साहब से मिले के बा, तब सबकर आसीस लेवै के चले के बा। धनुवा बोला कि ठीक बा बेटवा जइसन ठीक बुझाये उहै करिह।’

धनुवा ने धीरे से बैलगाड़ी को हांका। बैलगाड़ी कँुए के बगल से होती हुई दोनों ओर के खेतों के बीच वाली चकरोट पर नाली पार करके पहुँची। दस कदम चल कर गांव देवता के मंदिर पर माथा टिका कर दर्शन किए। रधिया भी पीछे-पीछे मंदिर तक आ पहँुची। रामकुमार ने अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिए और बैलगाड़ी फिर ठाकुर साहब के घर पर पहुँची। बैलगाड़ी से उतर कर धनुवा और रामकुमार ने ठाकुर साहब के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया।

जारी…

One thought on “लघु उपन्यास : करवट (तीसरी क़िस्त)

  • विजय कुमार सिंघल

    उपन्यास रोचक है. आगे क्या होगा इसकी उत्सुकता बढती जा रही है.

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