कविता

शायद ये सफ़र यहीं तक था

राह हमारी अलग हुई अब
शायद ये सफ़र यहीं तक था।

साथ चलेंगे बातें की थी
अनजाने से अनजाने में
आँख खुली तो देखा पाया
छुपकर निकले बेगाने से।
शायद ये सफ़र यहीं तक था॥

दिन भी निकला रातों जैसा
आँखों में कोई रतौंधी सी
हाथों से छूकर जब देखा
काली पट्टी बंधी निकली।
शायद ये सफ़र यहीं तक था

© राजीव उपाध्याय

Walking Away

राजीव उपाध्याय

नाम: राजीव उपाध्याय जन्म: 29 जून 1985 जन्म स्थान: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश पिता: श्री प्रभुनाथ उपाध्याय माता: स्व. मैनावती देवी शिक्षा: एम बी ए, पी एच डी (अध्ययनरत) लेखन: साहित्य एवं अर्थशास्त्र संपर्कसूत्र: [email protected]

2 thoughts on “शायद ये सफ़र यहीं तक था

  • विजय कुमार सिंघल

    कविता अच्छी है, भाव भी.

    • राजीव उपाध्याय

      बहुत-बहुत धन्यवाद

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