लघुकथा

ईमानदारी

गर्मीयों की शाम का समय था । सूरज अपनी रौशनी समेटते हुए अस्त हो रहा था। यही समय विशेष होता है जब महिलाएं खरीदारी करने निकलती हैं । कुछ इसी वक्त पर दिल्ली की बाजार में तीन औरते खरीदारी करते हुए एक रेहडी वाले के पास रुक गयी और पूछा ” यह बेल्ट कैसै दी भइया? ”

दुकानदार ने कहा “100 रुपये की है। ”

तब वह मोल भाव करने लगी ” ठीक -ठीक भाव लगा दो भइया पांच बेल्ट लेनी है ”

दुकानदार ने कुछ सोचते हुए कहा “ठीक है 80 रुपये में दे दूंगा ”

झट से उनमें से एक बोली ” नहीं 70 रुपये ठीक हैं ”

पर दुकानदार आज कुछ उलझन में था वो ज्यादा बहस न करते हुए 70 रुपये में मान गया । एक औरत ने 500 का नोट दुकानदार के हाथ में दिया , तो दुकानदार ने उसे 250 रुपये वापस दिये , वह तीनो दुकानदार का चेहरा देखने लगी। एक ने कहा ” भैया जी हिसाब अच्छे से करो ” पर दुकानदार ने झल्लाते हुए कहा “हिसाब सही किया है बहनजी आप को सामान लेना है तो लो वरना वापस करो ”

वो तीनों चुप हो कर आगे बढ़ गई पर उनका मन कचौटने लगा कि किसी के मेहनत के पैसे ऐसे नहीं लेने चाहिये । और वह पास वाली दुकान पर रुक गई कि शायद दुकानदार को याद आ जाये कि उसने पैसे कम लिये हैं । पर वह अपने दूसरे ग्राहकों में मशगूल हो गया । कुछ देर बीतने पर भी जब उसे याद न आया तब वह औरतें वापस आईं और उसे 100 का नोट देते हुए बोलीं “आपने हिसाब में गलती की है , हमसे 100 रुपये कम लिये हैं” ,और उसे हिसाब समझा कर दूसरी दुकान परा चलीं गयी ।

पर कुछ देर में वह दुकानदार उनके पीछे आया और एक बेल्ट देते हुए कहने लगा ” दीदी एक भाई की तरफ से छोटा सा तोहफा समझ लो ऐसे ईमानदार लोग बहुत कम मिलते हैं जो खुद पैसे दे जायें ”

उन लोगों के काफी मना करने पर दुकानदार न माना और कहने लगा ” बस आप लोग मेरी माँ और भाई के लिये दुआ करना कि वो सही सलामत घर आ जायें ”

पूछने पर उसने बताया कि ” आगरा से मेरे माँ व भाई कल रात से निकले हैं पर अब तक घर नहीं पहुंचे उन्हीं की चिंता में था और पुलिस के पास भी गया पर वो लोग चौबीस घंटे से पहले रिपोर्ट दर्ज नहीं करते । ”

“भइया आप चिंता न करे हम प्रार्थना करेंगे आप की माँ व भाई सकुशल घर आ जायें ” वह दुकानदार धन्यवाद की मुद्रा में हाथ जोड़कर आँखों में नमी लिये हुए अपनी दुकान की तरफ मुड़ गया ।

प्रिया

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

3 thoughts on “ईमानदारी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कहानी , ऐसा मेरे साथ भी हो चुक्का है. एक रेहडी वाला मेरी चेंज देने के लिए आधा किलोमीटर मेरे पीछे भागता आया था . मैंने उस को वोह पैसे देने चाहे लेकिन उस ने इनकार कर दिया. ऐसे लोग भी हैं , किसी चीज़ का बीज नास नहीं हुआ है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी. यदि हम सब इसी प्रकार ईमानदारी से अपने काम करें तो दुनिया बहुत अच्छी हो जाएगी.

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रिया विजय जी यह एक सच्ची घटना है

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