ये संवैधानिक पद
राष्ट्रपति, राज्यपाल, सी.ए.जी., मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष और विश्वविद्यालयों के वाईस चान्सलर आदि के पद संवैधानिक मान्यता प्राप्त पद हैं लेकिन पिछले ६५ वर्षों में इन पदों पर सत्ताधारी पार्टियों ने जिस तरह योग्यता और प्रतिभा की अनदेखी कर अपने चमचों की नियुक्तियां की है, उससे न सिर्फ़ इन पदों की गरिमा घटी है बल्कि आम जनता में यह धारणा पुष्ट हो गई है कि ये पद सत्ताधारी पार्टी के निष्क्रिय नेताओं और चमचों के लिये आरक्षित रहते थे, रहते हैं और रहेंगे भी। निस्सन्देह सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रहे कांग्रेसियों ने अपने कार्यकर्त्ताओं और समर्थकों को इन मलाईदार पदों का तोहफ़ा सर्वाधिक दिया है लेकिन अन्य पार्टियां भी पीछे नहीं रही हैं। जिसको जितना भी मौका मिला, जी भर के फायदा लिया। अब तो वी.सी. बनने के लिये करोड़ों रुपये एडवान्स दिये जा रहे हैं।
श्रीमती प्रतिभा पाटिल इन्दिरा गांधी की किचेन में उनकी पसन्द के स्पेशल डिश बनाती थीं। सोनिया ने उन्हें राष्ट्रपति बना दिया। ज्ञानी जैल सिंह कहते थे कि इन्दिरा जी कहें तो मैं झाड़ू भी लगा सकता हूं। उन्हें वफ़ादारी का ईनाम मिला। वे राष्ट्रपति बना दिये गये। एक-एक राष्ट्रपति की कुण्डली पर चर्चा करना बहुत उपयोगी नहीं होगा। बस इतना ही पर्याप्त है कि भारत की जनता सिर्फ़ तीन राष्ट्रपतियों को भारत का सच्चा राष्ट्रपति मानती है। वे हैं – डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डा. ए.पी.जे. कलाम। राजभवन तो सड़े-गले नेताओं का आश्रय हो गया है। हैदराबाद के राजभवन में नारायण दत्त तिवारी ने क्या नहीं किया? उनकी रति-क्रीड़ा की सीडी के सार्वजनिक होने के बाद ही उनसे इस्तीफ़ा लिया गया। मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर विद्यमान सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री बालकृष्णन आज भी अपने कार्यकाल के दौरान दामाद द्वारा उनके नाम पर किये गये अनेक घोटालों में फ़ंसे हुए हैं। रिटायर होने के बाद अध्यक्ष पद का तोहफ़ा पा गये। सरकार के पक्ष में कुछ निर्णायक फ़ैसले जो दिये थे उन्होंने।
वीसी का पद तो आजकल पूरी तरह बिकाऊ हो गया है। जो जितनी ऊंची बोली लगायेगा, चुना जायेगा। अगर गहरी राजनीतिक पैठ है, तो मामला सस्ते में भी निपट सकता है। मैं बी.एच.यू. का छात्र रहा हूं। कालू लाल श्रीमाली से लेकर आजतक इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय को एकाध अपवाद को छोड़कर कोई भी योग्य वीसी नहीं मिला। इतना सुन्दर विश्वविद्यालय दुर्दशा को प्राप्त हो गया है। जिस विश्वविद्यालय के कुलपति के पद को परम आदरणीय महामना मालवीय जी, डा. राधाकृष्णन, आचार्य नरेन्द्र्देव इत्यादि विभूतियों ने गौरव प्रदान किया उसी पद पर कालू लाल श्रीमाली जैसे घटिया राजनीतिज्ञ और लालजी सिंह, पंजाब सिंह जैसे जोड़-तोड़ में माहिर घोर जातिवादियों को बैठाया गया। आश्चर्य होता है कि आजकल चपरासी के पद पर भी नियुक्ति के पूर्व लिखित परीक्षा और साक्षात्कार से गुजरना पड़ता है लेकिन वीसी की नियुक्ति के लिये कुछ भी आवश्यक नहीं है। यह पद आनेवाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन प्रदान करनेवाला पद है। इसपर कार्य करनेवाले व्यक्ति के पास प्रशासनिक और प्रबन्धन की दक्षता होनी चाहिये। संघ लोकसेवा आयोग को लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम से वीसी के चयन की जिम्मेदारी देनी चाहिए। तभी इन पदों पर योग्य व्यक्तियों की तैनाती संभव है। इन पदों पर नियुक्ति में कांग्रेस द्वारा फिलाए गए भ्रष्टाचार तो जगजाहिर हैं लेकिन उस गन्दगी को साफ करने के लिये वर्तमान सरकार की ओर से भी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जा रहा है। भारत की शिक्षा-व्यवस्था का भगवान ही मालिक है।
इस देश को बदलने के लिए मोदी जी एक अछे नेता मिले हैं , अब देस की उन्ती होगी .
आपने अपने लेख में सही लिखा है कि कई संवैधानिक पद किसी योग्यता के बजाय व्यक्तिगत निष्ठा के आधार पर दिए जाते रहे हैं. कांग्रेस सरकारें इस मामले में बहुत बदनाम रही हैं. लेकिन अब मोदी जी के राज में इस प्रवृत्ति पर प्रभावी रोक लगी है. राज्यपाल के पद पुराने नौकरशाहों की जगह प्रभावशाली परन्तु वृद्ध हो चुके राजनीतिज्ञों को दिए गए हैं, जो स्वागत योग्य है.
क्या ये सारे पद राजनीतिज्ञों के लिए ही आरक्षित रहेंगे? क्या इनपर सुयोग्य समाजसेवियों, शिक्षाविदों, इंजीनियर, डाक्टर की नियुक्ति नहीं हो सकती. अभी तक तो यह सरकार भी कांग्रेसियों के पदचिह्नों पर चल रही है.
राज्यपाल का पद राजनीती से सम्बंधित है, अतः राजनीतिज्ञों को ही शोभा देता है. विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष, कुलपति आदि पदों के लिए समाजसेवियों, शिक्षाविदों, इंजीनियर, डाक्टर की नियुक्ति की जानी चाहिए.