भारतीय सेना को सलाम…
बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि धरती का स्वर्ग है, कश्मीर. अपने सौन्दर्य के लिए विश्वविख्यात है, कश्मीर. जहां जिस नज़ारे को देखकर फिर कुछ याद नहीं रहता वो मनमोहक स्थान है, कश्मीर. पहाड़ों से ढकी वादियों में बसा जन्नत-ए-ख़ास है, कश्मीर. चारों ओर से हरियाली से सराबोर अपने में खास है, कश्मीर. पर आज कश्मीर कहीं दफ़न सा हो गया है. खो सा गया है. उसकी सुंदरता को न जाने किसकी नज़र लग गई है. बाढ़ ने कश्मीर की सुंदरता को मानों कहीं छिपा दिया हो.कश्मीर की सुंदरता के इतिहास के रंगीन पन्नों के लगभग 60 वर्षो में पहली बार धरती के स्वर्ग का नजारा नरक से भी बदतर नजर आ रहा है. बाढ़ की विभीषिका ने जम्मू-कश्मीर के नैसर्गिक सौंदर्य को लील लिया है, मानो ग्रहण लग गया हो चांदनी रात में चमकते चाँद पर. करीब चार लाख लोग अब भी जीवन की आस में हैं. हालांकि हमारी सेना ने लगभग 1, 84,000 लोगों को बचाकर उनके गंतव्य तक पहुंचा दिया परन्तु अभी भी बड़े पैमाने पर लोग अपनी जान बचने की आस में किसी फ़रिश्ते का इंतज़ार कर रहे हैं. राज्य सरकार का तंत्र मानो अपना दम तोड़ चुका है.
ऐसी स्थिति में हमारी भारतीय सेना ने कमान अपने हाथ में ले ली है व बाढ़ में फंसे लोगों की जिंदगी बचाने को अपना धर्म मान लिया है. चाहे 16 घंटे में पुल बनाने का कारनामा हो या लोगों को बचाते हुए अपनी जान खो देना, सेना का हर जवान, जो इस आपदा में राहत पहुंचा रहा है, वंदनीय है. सेना का यह जज्बा निश्चित तौर पर देशभक्ति की भावना को कभी मरने नहीं देता. और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि हमारी सेना इस जज्बे को कभी मरने भी नहीं देगी. सच्चे अर्थो में सेना का हर सैनिक भारत रत्न है. सारे देश को इन्हें सलाम करना चाहिए. किन्तु इसे राजनीतिक दुर्भावना कहें या पाकिस्तान पोषित अलगाववाद, सेना की बचाव टीम पर पत्थरबाजी होती दिखी है. ऐसी खबरें हमने पिछले कुछ दिनों में सुनी हैं कि बचाव कार्य में देरी की वजह से लोगों का गुस्सा सेना दलों पर फूटने लगा है.
इधर, सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग का कहना है कि सेना अगले दो से तीन दिन में राहत कार्य पूरा कर लेगी और इस दौरान जवानों की संख्या या संसाधनों में कमी नहीं होने दी जाएगी. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जब तक बाढ़ में फंसे एक-एक व्यक्ति को सुरक्षित बचा नहीं लिया जाएगा, तब तक सेना अपने कदम पीछे नहीं लेगी. कुल मिलाकर परिस्थिति ऐसी निर्मित की जा रही है, मानो सेना बचाव कार्य के एवज में एक बड़े सौदे में हो. दरअसल, कश्मीर घाटी में संचार के सारे साधन पूरी तरह ठप हैं. जो पाकिस्तानी चैनल अब भी वहां काम कर रहे हैं, उन्होंने ही बाढ़ का फायदा उठाते हुए लोगों के बीच अफवाहें फैलानी आरम्भा कर दी हैं. और उनका सीधा निशाना भारतीय सेना की ओर है.
इसी को देखते हुए भारत सरकार ने तुरंत संज्ञान लेते हुए डीडी कश्मीर का प्रसारण दिल्ली से शुरू कर दिया है, साथ ही प्रसार भारती ने नियमित प्रसारण सुनिश्चित करने के लिए राज्य में एक विशेष दल भेजा है, तो भी कश्मीरी बड़ी तादाद में पाकिस्तानी चैनलों द्वारा फैलाए जा रहे जहर को देख-सुन रहे हैं. घाटी में मौजूद अलगाववादी समूह भी निजी स्तर पर सेना के विरुद्ध दुष्प्रचार में लगे हैं. चूँकि मानवीयता के नाते इस वक्त उनके प्रति कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. अत: उनका हौसला भी बढ़ता जा रहा है. ऐसे में खुफिया एजेंसियों को आशंका यह है कि बाढ़ का फायदा उठाकर पाकिस्तानी आतंकी घुसपैठ कर सकते हैं और घाटी के अलगाववादी उनकी मदद भी कर सकते हैं. सीमा रेखा पर कुछ जगहों पर लगी तार की बाड़ के प्रभावित होने की भी खबरें सुनने में आई हैं.
इससे तात्पर्य है कि भारतीय सेना इस समय दो-दो मोर्चो पर लड़ रही है. उसके लिए सीमा की सुरक्षा भी जरूरी है और लोगों की जान बचाना तो सर्वोपरि है ही. देखा जाए तो सेना के बचाव कार्य के इतर जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक समूह अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं. क्योंकि बाढ़ की विभीषिका का मंजर जैसे-जैसे कम होगा, राज्य की राजनीति भी अपने चरम पर होगी. एक पक्ष द्वारा दूसरे पर दोषारोपण आम हो जाएगा. बाढ़ के पश्चात् कश्मीर में महामारी का ख़तरा बढ़ने की पूरी संभावनाएं होंगी पर इस ओर ध्यान देकर हर एक समूह अपनी अपनी चुनावी रोटियाँ सेंकने ने मशगूल हो जायेंगे.
हालात यह भी हो सकते हैं कि राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को राज्य के सरकारी तंत्र की निद्रा पर जवाब देना मुश्किल होगा, तो दूसरी ओर अलगाववादी घाटी के बाशिंदों को बरगलाने की कोशिश भी करेंगे. लश्कर-ए-तैयबा का सरगना हाफिज सईद पहले ही आग उगल चुका है कि पाकिस्तान में आई बाढ़ में भारत की भूमिका है. कुल मिलाकर इस प्राकृतिक आपदा पर भी जमकर राजनीति होने लगी है. और आगे भी इसके बढ़ने के पूरे प्रबल आसार हैं. वह तो भला हो केंद्र सरकार का जिसने राहत कार्य के सभी सूत्र अपने हाथ में ले लिए हैं, वरना घाटी का क्या होता, सोचकर ही डर लगता है. तारीफ करनी होगी भारतीय सेना की, जो अपनी परवाह किए बगैर राहत एवं बचाव कार्य में दिन रात लगी हुई है. बाढ़ से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में अंतिम आदमी तक मदद पहुंचाने के लिए सेना द्वारा चलाए जा रहे राहत अभियान की रणनीति में भी अब बदलाव किया गया है. इसमें लगे सैन्य बल का सारा जोर भोजन-पानी जैसी जरूरी मदद पहुंचाने के साथ ही व्यापक पैमाने पर पानी में फंसे हुए लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने पर है. पत्थरबाजी के बीच वायुसेना की सेवाओं को बढ़ा दिया गया है.
नौसेना के कमांडो दस्तों को अब नौकाओं के सहारे निचले इलाकों से लोगों को निकालने के मिशन में उतारा गया है. अब तक राहत व बचाव कार्य में 84 विमान व हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं. बाढ़ पीड़ित जम्मू कश्मीर में 30 हजार से ज्यादा सैन्य दस्तों को भी सहायता के मिशन में उतारा गया है. इनमें से 21 हजार सैनिक केवल श्रीनगर क्षेत्र में तैनात किए गए हैं. सेना की इन कोशिशों ने रंग दिखाना शुरू भी कर दिया है. यदि घाटी के लोगों का अपेक्षित सहयोग सेना को मिला होता, तो अब तक स्थिति सामान्य हो जाती. बिना सहयोग के ही वह दिन और रात घाटी को पुन: स्वर्ग में तब्दील करने में लगी है. अत: सेना के कार्यो और उसकी जीवटता की जितनी तारीफ की जाए, कम ही है.
हम अपनी सेना के हर जवान को इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए उन्हें शुभकामनाएं देते हैं. हमारी सेना ने जो कर दिखाया है शायद ही किसी देश में यह देखने को मिलेगा. हमारी सेना के जज्बे को देखते हुए, पाकिस्तान तक ने हमारी सेना के सम्मान में कहा कि, “जय हिन्द की सेना” बेशक पाकिस्तान अपने अलगाववाद समूहों का हमारे देश में संचालन कर रहा हो. परन्तु उसने भी हमारी सेना को बधाई दी है. हम हमारी सेना को बधाई देते हैं. आज उन्होंने एक मिसाल कायम की है. दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी सेना ने दूत बनकर बाढ़ में फंसे लाखों लोगों की जान बचाकर यह साबित कर दिया है कि हमारी सेना हर कदम पर हमारे साथ है. हम उन सैनिकों को भी श्रधांजलि देते हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की भी आहुति देदी, कश्मीर में राहत कार्य के लोगों की जान बचाते हुए. हमारे सैनिक ही असली ‘भारत रत्न’ है.
-अश्वनी कुमार
बहुत अच्छा लेख, अश्वनी जी. कश्मीर में भारतीय सेना ने जो किया है वह सारे संसार में बेमिसाल है. इस पर भी उनके साथ कश्मीरी लोगों का व्यवहार बहुत शर्मनाक और निंदनीय है.