कविता : औरत
बात बात पर क्यूँ औरत को ताङा जाता है
हर बात पर क्यू उसकी आत्मा को मारा जाता है
क्यू दागे जाते है उस पर ही सब सवाल
साध के उसको ही निशाना क्यू बढाते है बवाल
उसके मां बाप को भी क्यूं कटघरे मे खङा किया जाता है
तानो मे उनको लेकर क्यू अपमानित किया जाता है
क्या अपने जिगर के टुकङे को सौंपना उनकी कोई गल्ती थी
या क्या उनसे अपनी बेटी खुद से नही पलती थी
असमंजस सी स्थिति है
बङी दुखद परिस्थिति है
औरत के संस्कारो पर क्यूं सवाल उठता है
सुनाने वाले से पूछो क्या उसके ये संस्कार पुख्ता है
तरस आता है आज भी मुझे उन लोगो की इस छोटी सोच पर
दिल को रुला देते है जो रिश्तो को खरोंच कर
नही समझ पाई अब तक मैं क्या औरत होना गुनाह है
पति से अपने न जुबां लङाओ क्यूंकि सिर पर उसकी पनाह है
आखिर कब तक और औरत को ही सहना होगा
कब तक उसे उन बेतर्क आसुंओ संग बहना होगा ??
बहुत सुन्दर कविता
सुन्दर
यह औरत की पीड़ा , मेरी माँ की मेरी बहन की और सभ बहनों की मजबूरी है , कारण ? एक सिस्टम जो समझ ही नहीं पाता कि मरद कभी समझ ही नहीं पाया कि और औरत एक पत्नी तो है लेकिन वोह माँ बहन और बेटी भी है.
Ji ha ye vyatha har stri ki hai sir..jisse use swaym hi ladna hoga
गुरमेल सिंह जी..हमारे समाज की यह एक मानसिक व्यथा है जहां औरत को हरहाल मे दबाया जाता है।
इस कविता में औरत की पीड़ा को अच्छी तरह व्यक्त किया गया है. बढ़िया.