कविता

सफेद बाल…

आज जब
खुद को देखा आईने में
तो सकपका सी गई
आंखे चौंधिया गई
दिल का धङकना जैसे
थम सा गया
एकटक..पल पल बस
खुद को ही निहार रही थी
खुद पर विश्वास भी
कहाँ हो रहा था
पर जिंदगी की इस कङवी सच्चाई को
मुझे जबरदस्ती के
एक घूंट की तरह
पीना ही था
बेबस थी
बस देखे ही जा रही थी
रुआंसी सी होकर
लाचार सी
अपने सिर पर उगे
मात्र उस एक …
सफेद बाल को

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

2 thoughts on “सफेद बाल…

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • एकता सारदा

      Thanku sir..

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