नयी रातें
हो चली अब पुरानी बातें
नया जमाना नयी हैं रातें
सोचो जरा—
उनका क्या होगा?
जो करते थे
केवल गरीब की बातें,
भूखी रखते थे
गरीब की आंतें
पुँजीवाद की बेबजह बुराई करना
लोंगों को रोजगार ना देना
समाजवाद की केवल बातें करना
गरीबी की गरीबी दूर ना करना
केवल गरीबों की भावनाओं से खेलना
हो चली अब पुरानी बातें
नया जमाना नयी हैं रातें…
अच्छी कविता.