कविता

हमारा इसमें क्या कुसूर था

काटों पर ही चलना,
अपना जुनून था,
नफरत को प्यार से,
जीत कर आया सुकून था |
क्रोध के अग्नि पर,
प्रेम की बौछार करना,
अपना तो ध्येय था,
निरर्थक नहीं यह व्यय था |
सत्य का आह्वान,
असत्य का विनाश करना,
अपना तो यही उसूल था,
इसके लिए बद होना भी कबूल था |
प्यार का सागर नहीं,
बन पाये तो क्या,
नदी बनना भी हमें,
मंज़ूर था |
आसमा से गिरा दिया,
यूँ ज़मीन पर तु ही,
बता दे ओ मेरे माहि,
हमारा इसमें क्या कुसूर था |
||सविता मिश्रा |

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

3 thoughts on “हमारा इसमें क्या कुसूर था

  • मनजीत कौर

    बहुत सुन्दर कविता दीदी .

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता है , अछे विचार .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, बहिन जी.

Comments are closed.