लेख

यू मनाऐ दिवाली ??

अरे !आज तुम इसे साथ क्यू लाई,इसके स्कूल नही है क्या? मैने आश्चर्य से अपनी कामवाली रमा को पूछा।
मैङम दिवाली की छुट्टी अब लगने वाली ही है दो-चार दिन पहले से ही छुट्टी दिलवा दी।वो क्या है ना अभी सभी घरो मे सफाई का काम चल रहा है तो इसे भी साथ ले आई सोचा दो -चार पैसे ज्यादा कमा ले।दिवाली है ना सिर पर।इसके और बिट्टी के लिये कपङे और पटाखे खरीदने है। सास के लिये नई साङी लेनी है त्यौहार है ना कब से कह रही है इक साङी ला दो ।मेरा तो कुछ नही कोई न कोई मेमसाब अपनी पुरानी साङी दे ही दैगी।मैं एकटक उसे देखती रही।गलत तो वो भी नही थी पर इस तरह से छुट्टी दिलवाना मुझे बहुत अखर रहा था। वैसे भी वो लाजो को स्कूल कहां भेजना चाहती थी मेरे लाख समझाने पर और उसकी स्कूल का खर्चों मेरे उठाने पर वो बङी मुश्किल से राजी हुई।इसपर भी वो वार त्यौहार उसे छुट्टी दिला ही देती कुछ पैसे इकट्ठे होने की चाहत मेँ।
मै इसे चाहकर भी गलत नही ठहरा सकती थी क्यूंकि उनकी भी अपनी चाहते ,जरुरते होती है जिसे पूरा करने के लिये उन्है ये मश्कत करनी ही पङती है।
मै ये सोच ही रही थी कि मेरी 10साल की बेटी बोली ,मम्मा क्या हम इन्हें कुछ पटाखे और कपङे नही दे सकते?हमारे पास इतने तो पैसे है कि हम इनकी इत्ती सी मदद तो कर सकते है।मै उसकी बात से सहमत तो थी पर यूंही बोल पङी हम एक रमा के परिवार का करेंगे पर दुनिया मे कितनी रमाए और है उनका क्या ?त्यौहार मनाने का हक तो सबको है ना?इसपर वो तपाक से बोली,मम्मा अगर सब हम जैसा सोचे और थोङा खर्चा यू किसी की मदद करके करे तो क्या काफी हद तक कीसी को खुशियां नही मिल सकती।ये गरीब है इसमे इनका क्या दोष? क्या इन्है त्यौहार मनाने का, खुशिया समेटने का हक नही है? अपनी छोटी सी बेटी के मन मे इतनी दया भाव देख मै सचमुच पुलकित हो उठी।और सही ही तो कह रही थी वो हम अपने बेहिसाब खर्चो मे से गर कुछ खर्चा किसी जरुरत मंद को खुशिया देकर करे तो क्या हमारी दिवाली रंगीन नही होगी?शायद और ज्यादा रंगीन …क्यूंकि उसमे किसी की दुआओ की रोशनी भी साथ होगी।
भई मुझे तो मेरी बेटी का सुझाव पसंद आया और क्या आपको????

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

2 thoughts on “यू मनाऐ दिवाली ??

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कहानी , कमजकम ऐसे तिओहारों पर तो किसी की मदद करनी ही चाहिए , एक रिवाज ही बन जाना चाहिए कि किसी की मदद करनी ही है , इस ख़ुशी में हर एक को शामिल होने का हक़ है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी लघु कथा. श्रेष्ठ भावनाएं. अगर सभी लोग इसी प्रकार सोचें, तो किसी को अपनी गरीबी नहीं अखरेगी और न अमीरी का घमंड होगा.

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