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‘पत्रकारिता के विविध आयाम’ विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

‘मीडिया तय करती है शक्ति और सत्ता की जवाबदेही’
सोशल मीडिया ने खोले अभिव्यक्ति के नए क्षितिज

लखनऊ. विश्व संवाद केन्द्र ट्रस्ट लखनऊ द्वारा संचालित “लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान” द्वारा “जनसंचार के विविध आयाम” विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ रविवार को संस्थान के अधीश सभागार में किया गया. संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में “मीडिया का धर्म और संकट” विषय पर विशेषज्ञ व्याख्यान के लिए मुख्य वक्ता के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्विद्यालय भोपाल के नोयडा परिसर के निदेशक और इण्डिया टुडे के पूर्व सम्पादक श्री जगदीश उपासने जी, ने कहा कि ‘मीडिया आज अपने व्यावसायिक धर्म और उसके संकट’ के बीच समन्वय और सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. एक ओर जहां उसने अपने लिए खुद ही लक्षमण रेखा भी खीचनी है तो दूसरी ओर सामाजिक सरोकार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी तय करनी है. श्री उपासने जी ने आगे कहा कि मीडिया का काम सत्य का आग्रह है. निडर होकर, स्वतंत्र होकर, पक्षपातरहित विश्लेषण प्रस्तुत करना ही मीडिया का धर्म है. आज इस पर भी सवाल उठ रहे हैं. मीडिया पक्षपाती, व्यावसायिक हितों की पूर्तिकर्ता, नेता और स्वार्थी, निजता का हनन, मीडिया की जवाबदेही और उसके पत्रकारों का उत्तरदायित्व तय होना चाहिए. मुख्य धारा की मीडिया के सम्मुख आज वेब पत्रकारिता ने एक चुनौती पेश की है. आने वाले समय में मीडिया का कौन सा संस्करण रहेगा यह तो नहीं कहा जा सकता पर मीडिया जरूर रहेगा क्योंकि उसे सत्ता और शक्ति की जवाबदेही तय करनी है. प्रथम सत्र में अध्यक्षता क्र रहे वरिष्ठ सम्पादक और पूर्व राज्यसभा सांसद श्री राजनाथ सिंह सूर्य जी ने अपने संबोधन में कहा कि पत्रकारिता ने हमेशा ही अपनी मर्यादा में रहते हुए भारतीय जन आकांक्षाओं और सरोकारों को ही अपने लिए हमेशा प्राथमिकताएं निर्धारित की थीं.

सेमीनार के ‘‘सोशल मीडिया: वैकल्पिक पत्रकारिता” विषयक द्वितीय सत्र में वेब पत्रकारिता पर जनयुग डाट काम के सम्पादक डॉ. आशीष वशिष्ठ ने विषय प्रवेश करते हुए इसकी वर्तमान उपादेयता को रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि समाचार के यह जनमाध्यम जहां एक ओर सार्वभौमिक हैं वहीं दूसरी ओर वह इको फ्रेंडली माध्यम भी है. वेब पत्रकारिता का भविष्य निश्चित ही सुनहरा है क्योंकि भारत में इस माध्यम को अभी एक दशक ही हुआ है. इस सत्र के मुख्य वक्ता और प्रवक्ता डाट काम के सम्पादक श्री संजीव सिन्हा, ने बताया कि हिन्दी ब्लागिंग ने जनसंचार और पत्रकारिता के लिए नए क्षितिज खोलने का कार्य किया है. उन्होंने आगे बताया कि हिन्दी ब्लागिंग ने लोगों की अभिव्यक्ति को मंच दिया है. इसने विचारों का लोकतंत्रीकरण किया है. हिन्दी ब्लागिंग आज रचनात्मकता को अभिव्यक्ति दे रहा है. हिन्दी ब्लागिंग ने सम्पादकीय कैंची से लेखन को मुक्त कर दिया है. यहाँ लेखक ही सम्पादक और प्रकाशक की भूमिका में है. हिन्दी ब्लागिंग ने मुख्यधारा के मीडिया को चुनौती दी है. यहाँ अनेक क्षेत्रों में विपुल लेखन हो रहा है. इसकी विश्वसनीयता भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. यह वैकल्पिक पत्रकारिता का सशक्त मंच बन गया है. ऐसा भी कह सकते हैं कि अब वेब मीडिया ही मुख्यधारा का मीडिया बन गया है. अब आने वाले समय की पत्रकारिता का भविष्य वेब मीडिया ही है.

अध्यक्षता कर रहीं सोशल मीडिया विशेषज्ञ और पब्लिक फोरम की सम्पादक डॉ. नूतन ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा कि सोशल मीडिया ने जनसंचार की सीमारेखाओं का अतिलंघन तो किया है पर उसने स्कैनिंग न्यूज की परम्परा को भी धक्का पहुचाया है. इस माध्यम ने समय और परिस्थिति के सारे गढ़े गढ़ाए मानकों से बाहर जाकर अभिव्यक्ति के नए क्षितिज तलाशने का काम किया है. सोशल मीडिया आज क्रांतिकारी अभिव्यक्ति का माध्यम लेकर आया है. ये दीगर बात है कि आप हिन्दुस्तान के सत्ता और सामाजिक परिवर्तन के पीछे इसकी अहमियत को जिम्मेदार मत मानिए पर सोशल मीडिया ने दुनिया के आधा दर्जन देशों की तानाशाही को उखाड़ फेकने का काम किया है. सामाजिक कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र सक्सेना जी ने विषय प्रवेश किया. अतिथियों का स्वागत संस्थान के अध्यक्ष श्री रामनिवास जैन और ‘लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान’ का परिचय निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा तथा विश्वविद्यालय परिचय राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन विश्विद्यालय की क्षेत्रीय समन्वयक डॉ. नीरांजलि सिन्हा द्वारा प्रस्तुत किया गया.

‘दूरदर्शन का दायित्व विज्ञापन का दास बनाना नहीं’
“जनसंचार के विविध आयाम” विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन ‘दूरदर्शन के सामाजिक उत्तरदायित्व’ विषयक सत्र दूसरे सत्र में विषय प्रवेश करते हुए विश्व संवाद केन्द्र, लखनऊ के सामजिक कार्यकर्ता, श्री राजेन्द्र जी ने अपने संबोधन में कहा कि, “दूरदर्शन ने सामाजिक उत्तरदायित्व की अपनी महती भूमिका को अब तक काफी हद तक समर्पण भाव से पूरा करने का हर संभव प्रयास किया है. समय और देशकाल की बदलती परिस्थितियों ने भले ही कुछ बनावटी चुनौतियां खड़ी करने की कोशिश की हो पर उनसे पार पाने के लिए भी दूरदर्शन अपने आपको काफी हद तक तैयार कर रहा है. वह अपने सर्वजन हिताय के उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है.” मानवाधिकार कार्यकर्ता व समाजशास्त्री डॉ. आलोक चांटिया जी ने विषय प्रवेश करते हुए विज्ञापन के माध्यम से दूरदर्शन के सामाजिक उत्तरदायित्व और समाज पर उसके पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के विषय में विस्तार से बताया. उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि “दूरदर्शन कैसे अनायास ही अपनी जकड़न में ले लिया है. हम आज धीरे-धीरे विज्ञापन जगत के वश में शामिल होते जा रहे हैं. सुबह गुड मार्निंग चाय के विज्ञापन से लेकर हम गुड नाइट के विज्ञापन के साथ ही सोते हैं, लिहाजा विज्ञापन ने हमको एक तरह से अपना गुलाम बना लिया है. दूरदर्शन का सामाजिक दायित्व भी बेहद महत्वपूर्ण है उसके इसी प्रयास के तहत ही पोलियो, कुष्ठ रोग और क्षय रोग जैसी बीमारियों की रोकथाम की जा सकी. दूरदर्शन की कथनी और करनी के बीच में द्वन्द चल रहा है. जब हम विपणन पर ज्यादा जोर देते हैं तो भारतीय संस्कृति टूटकर बिखरती है. दूरदर्शन ने स्वच्छता, शौचालय अभियान जैसे कार्यक्रमों से दायित्व निर्वहन का वास्तविक स्वरुप निखरकर सामने आ रहा है.”

सत्र के विशिष्ट वक्ता और शैक्षिक दूरदर्शन केंद्र लखनऊ में प्रवक्ता डॉ. हेमंत श्रीवास्तव जी ने अपने संबोधन में बताया कि, “दूरदर्शन ने अपनी स्थापना काल से लेकर आज तक अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व को न सिर्फ सफलतापूर्वक संपादित किया है. हमें निराश होने की आवश्यकता बिलकुल नहीं है दूरदर्शन इसका निरंतर प्रयास कर रहा है.” मुख्य वक्ता के तौर पर पूर्व उपमहानिदेशक, दूरदर्शन केन्द्र लखनऊ श्री आर. के. सिन्हा जी ने अपने संबोधन में कहा कि, “दूरदर्शन अपने 700 चैनलों की विशाल श्रंखला के साथ पूरे देश में सामाजिक हितचिंतन में शामिल है. कृषि क्षेत्र में इसके सरोकार बढ़े हैं काफी प्रगति हुई है. महिला विषयक कार्यक्रम दूरदर्शन के लिए बेहद गंभीर और संवेदनशील विषय है. हमें दूरदर्शन के आईने में भी पुरातन पर विश्वास करना होगा. संस्कृति को महत्व देना सीखना पडेगा. प्रसार भारती ने अपनी कोई सकारात्मक भूमिका का निर्वहन नहीं किया है. डीडी हमारी संस्कृति को सम्मुख रखती है.” अध्यक्षता कर रहे ल.वि.वि. में पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश चन्द्र त्रिपाठी जी ने अपने संबोधन में बताया कि, “बदलती परिस्थितियों में आज दूरदर्शन भी बदल रहा है इसे सामाजिक सरोकार की याद दिलाते रहना होगा. संवेदनशीलता का अभाव, मानवीयता का अभाव जैसे मुद्दों को भी सूचना की महत्वपूर्ण भूमिका में शामिल करना होगा.” इस सत्र के उपरान्त पावर प्वाइंट प्रस्तुतीकरण वनस्थली महिला विश्वविद्यालय में शोध छात्रा सुश्री प्रभात दीक्षित और राष्ट्रीय सहारा लखनऊ में पत्रकार श्री हेमंत पाण्डेय जी, द्वारा ‘मीडिया ट्रायल इन पब्लिक ओपीनियन’ विषय को बेहद संजीदा और तथ्यों के साथ लोगों के मध्य किये गए अपने सर्वेक्षण और उस पर प्राप्त की गई प्रतिक्रया के विश्लेषण को प्रस्तुत किया गया.

‘रेडियो कार्यक्रमों की कलात्मकता’ द्वितीय सत्र में विषय प्रवेश करते हुए लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा जी ने बताया कि रेडियो कार्यक्रम हिन्दुस्तान की बहुसंख्यक जनता के लिए जनसंचार के लिए बेहद लोकप्रिय और प्रभावी माध्यम माना गया है. इसलिए ग्रामीण भारत में रेडियो को जीवन्तता प्रदान करने की कोशिश निरंतर जारी रखनी चाहिए. बतौर मुख्य वक्ता, जाने माने कथाकार व पूर्व समाचार वाचक श्री नवनीत मिश्र जी ने रेडियो पर संगृहीत अपने अनुभवों को साझा करते हुए संबोधन में कहा कि, “भारतीय ग्रंथों में कुशल और प्रभावी वक्ता के छः गुण बताये गए हैं. मधुरता, स्पष्टवक्ता, अच्छा स्क्रिप्ट लेखन, सुस्वर वाचक, धैर्यम, लैसमत्वं, को आज भी अपनाने की जरुरत है. वक्ता को सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि उसे क्या नहीं बोलना है. लिखने वाले को यह सोचना चाहिए कि क्या नहीं लिखना है. श्रोता, दर्शक और पाठक को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि क्या नहीं सुनना, देखना और पढना है. चित्र से शब्द नहीं गढ़े जा सकते पर शब्दों से चित्र का निर्माण किया जा सकता है. वक्ता को सामान्य ज्ञान से पूरी तरह से परिपक्व भी होना चाहिए. वाणी सजीव जैसी ही प्रतीत होनी चाहिए. यह जरूरी नहीं की रेडियो के क्षेत्र के व्यक्तियों को ही अच्छा वक्ता होना आवश्यक है बल्कि सामान्य वक्ता के लिए भी यह गुण होना नितांत आवश्यक है.” अध्यक्षता कर रहे प्रांत प्रचारक व सामाजिक कार्यकर्ता श्री संजय जी, ने कहा कि लोगों के मध्य रहकर कार्य करने वाले संघ कार्यकर्ताओं को वक्तृत्व का गुण होना भी नितांत आवश्यक है यहां आकर मैंने इस तथ्य को भली-भांति सीखने का कार्य किया है.

पत्रकारिता का आदर्श मनुषत्व है: डॉ. रहीस सिंह
‘सर्वग्राहिता है मीडिया लेखन की भाषा का सार’
संगोष्ठी के अंतिम दिन “जनसंचार के विविध आयाम” विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन के ‘प्रिंट मीडिया: मिशन और प्रोफेशन’ विषयक प्रथम सत्र के दौरान विषय प्रवेश करते हुए विभाग प्रचारक व सामाजिक कार्यकर्ता श्री अमरनाथ जी ने अतिथियों का स्वागत किया. सिटी टाइम्स में सम्पादक डॉ. मत्स्येन्द्र प्रभाकर ने विषय प्रवेश करते हुए प्रिंट मीडिया के विभिन्न उपादानों और उसमें किस तरह से मिशनरी और प्रोफेशनरी स्वरुप के मध्य संतुलन बनाकर रख सकते है इस पर विस्तार से प्रकाश डाला. विशिष्ट वक्ता के तौर पर बोलते हुए द डेक्कन हेराल्ड के विशेष संवाददाता डॉ. संजय पाण्डेय ने बताया कि मीडिया में प्रोफेशनलिज्म का शामिल होना गलत नहीं है बशर्ते कि हम समाचार की दशा और दिशा का ध्यान रखें.

मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित वैश्विक एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. रहीस सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि मीडिया ने वर्तमान समय में निजी राय से ही समाज हांकने की परम्परा को अख्तियार कर लिया है. देश दुनिया में घटने वाली दर्जनों ऐतिहासिक और अनिवार्य तथ्यों के स्थान पर वह सिर्फ उस खबर का ही चुनाव करता है. उन्होंने आगे बताया कि संवाद और विवाद की प्रक्रिया में एक आईना है जो संवाद करता है. फिर वही आईना विवाद पैदा कर देता है. पत्रकारिता का अपना अनुभव तत्व होता है वह पढने की नहीं करने की चीज होती है. सम्पादक को मालिक या विज्ञापन किसी अच्छे समाचार को छपने से रोकता नहीं है बशर्ते कि आप उसे प्रकाशित करना चाहते हों. मीडिया भटकाव की स्थिति में है उसने शान्ति स्थापना में नहीं तनाव को बढावा दिया है. विवाद की स्थिति का निर्माण हथियार करते हैं और हथियारों की धार संचार से तय होती है इसलिए आने वाले समय में हमें जनसंचार के इस इस भयावह खतरे के प्रति भी सावधान रहना होगा. सत्र की अध्यक्षता कर रहे महानिदेशक, नागरिक सुरक्षा, उत्तरप्रदेश श्री अमिताभ ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा कि मीडिया को हमेशा अपनी भूमिका के सन्दर्भ में जागरूक रहना चाहिए. केवल परिस्थितियों को दोषी न माने मिशन और प्रोफेशन में कोई द्वन्द नहीं है. अच्छा प्रोफेशनल भी अच्छा मिशनरी हो सकता है. मिशन के साथ साथ एक पत्रकार के लिए जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करते हुए अच्छा जीवन स्तर जीना भी अपराध नहीं माना जाना चाहिए.

‘पत्रकारिता की भाषा और शिल्प’ विषयक द्वितीय सत्र में विषय प्रवेश करते हुए जनयुग डाट काम के सम्पादक डॉ. आशीष वशिष्ठ ने कहा कि शब्द प्रमाण है. शब्द ब्रह्म का रूप होता है. पत्र की भाषा भी आम बोलचाल की भाषा ही होनी चाहिए. भाषा के प्रयोग में निष्पक्षता और पूर्वाग्रह रहित शब्दावली और शैली का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे हरिजन, हिजडे और वैश्या जैसे शब्दों को लिखने से अब परहेज किया जाता है ठीक उसी प्रकार भाषा को गत्यात्मक होना चाहिए. शिल्प के स्तर पर हमेशा ही इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि हमारा मीडिया लेखन किस वर्ग को लक्षित करके किया जा रहा है. सत्र की अध्यक्षता कर रहे स्वतंत्र भारत के पूर्व सम्पादक श्री नन्द किशोर श्रीवास्तव जी ने बताया कि हम पहले कहते थे कि अपनी भाषा सुधारनी हो तो समाचार पत्र और पत्रिकाएं पढ़िए अब तो इसका उलटा हो जाएगा ठीक होने का अवसर तो नहीं है खराब होने की पूरी गुंजाइश बनी रहेगी. अतिथियों का धन्यवाद ‘लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान’ के निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा द्वारा दिया गया. आपने अपने संबोधन में बताया कि इस सेमीनार में कुल 98 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया. आयोजन को सफल बनाने में संस्थान के छात्र श्री ओम शंकर पाण्डेय, श्री विनोद कुमार मिश्र, श्री कृष्ण कुमार, श्री मनोज कुमार चौरसिया, श्री अजीत कुशवाहा, श्री ऋषि कुमार सिंह, कु. चांदनी गुप्ता ने पूरा योगदान दिया. संगोष्ठी का तीनों दिन तक सफल संचालन संगोष्ठी संयोजक अतुल कुमार सिंह द्वारा संपन्न किया गया. इस त्रिदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 5 से 7 अक्तूबर तक किया गया था.

रिपोर्ट: अतुल कुमार सिंह
संपर्क: 09451907315
[email protected]

One thought on “‘पत्रकारिता के विविध आयाम’ विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

  • विजय कुमार सिंघल

    यह एक अच्छा कार्यक्रम था. ऐसे कार्यक्रम समय समय पर लगातार होने चाहिए.

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