*******नदी*****
*******नदी*****
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कैसे कैसे
बाधाओं से गुजर
बनाई होगी
धरती के सीने पर
अपनी राह
वही जानती होगी
कभी पहाड़
रोड़ा बना होगा
चाल उसकी
मंद हुई होगी
कभी
तपती धरती ने
सारा पानी
सोख लिया होगा
वर्षों तक
मृतप्राय सी
पड़ी रही होगी
आकाश की ओर
मुंह उठाए
बारिश के
इंतजार में
कैसे कैसे
यंत्रणा सह
अपने बल पर
खुद को जीवित
रखा ्होगा उसने
हमारे लिए
बिना रुके बिना थके
रात दिन
बहती रही अनवरत
उबड़ – ख़ाबड़ पथरीली
राहों को दिया
अपने जल का वसन
फैलाती रही हरियाली
सिंचती रही
सभ्यताओं की जड़
सुने तट पर
बसाती रही
गाँव और शहर
उदगम से विलय तक
सबके दुख -दर्द को
समझती रही
हो मौन
पीती रही व्यथा
बाँटती रही अमृत
नदी तुम सिर्फ
गति की गीता ही नही
भावनाओं का समन्दर भी हो !!!!!
*****भावना सिन्हा****
नदी के रास्ते का वर्णन बहुत सुन्दर लफ़्ज़ों में विस्तार से बिआं किया गिया है , बहुत खूब !