फाइल तू बड़भागिनी
फ्रंटपेज पर एक खबर छपी थी कि दिल्ली की पूर्व सरकार की एक फाइल गायब हो गयी। वह सामान्य प्रकार अथवा सामान्य जाति की फाइल नहीं थी। वह एक विशेष प्रकार की फाइल थी। यह सर्वविदित ही है कि भारत में विशेष वही है जिस पर शेष है। शेष पर ही शेषनाग विराजमान होते हैं। अवशेष पर शेषनाग प्रसन्न नहीं होते। लक्ष्मी, सांप और उल्लू हमेशा साथ-साथ रहते हैं। सांप लक्ष्मी का बाॅडीगार्ड है। वह फाइल इसलिए महत्वपूर्ण है कि उसमें 670 करोड़ रुपये का लेखा-जोखा है। अखबार वाले भी बड़े मजाकिया हैं। लिख रहे हैं कि 670 की फाइल गायब हो गयी। इस वाक्य से यह बोध हो रहा है कि जैसे 670 करोड़ की कोई वस्त खरीदी थी और वो गायब हो गयी।
वस्तु के तथास्तु होने के पश्चात् कुछ नहीं बचता, इसलिए बेचैनी होना स्वाभाविक है। बेचैनी गृह में भी होती है और गृह मंत्रालय में भी। नये गृह में नई बहू ने प्रवेश करके अनाज का करवा पैर से लुढ़काया है। नारियल फोड़ा तो पता चला कि नई टेक्नोलाॅजी से कोई पहले ही नारियल का पानी पी चुका था। पिछली सरकार के ड्राइवरों और मैकेनिकों की खाने-पीने की आदतों को देखते हुए नया गृह सचेत है। इसलिए वह फाइलों को टटोल रहा है। पुरानी फाइलों की कीमत भी पुरानी शराब की तरह बढ़ गयी है।
कन्फ्यूजन यह है कि 670 करोड़ की फाइल गायब हुई है या 670 करोड़ रुपये गायब हुए हैं? चलो इसका फैसला तो वो सब मिलकर कर लेंगे, लेकिन वह फाइल बड़ी बड़भागिनी है। बृज क्षेत्र में भाग्यशालिनी को बड़भागिनी कहा जाता है। वैसे वह फाइल केवल सौ-भाग्यवती नहीं थी, वो तो करोड़-भाग्यवती थी। पुराने जमाने में तो सौ रुपये भी बहुत होते थे और बड़भागिनी शब्द तो कृष्ण के जमाने का है। राधा जी को बड़भागिनी कहा जाता था। बृज क्षेत्र का कुरुक्षेत्र से बड़ी नजदीकी रिश्ता रहा है। इसलिए दिल्ली की फाइल को बड़भागिनी कहा जाये तो अतिरंजना नहीं होगी।
बृजभाषा के कवि काका हाथरसी ने कभी कहा था- ‘फाइल तू बड़भागिनी, कौन तपस्या कीन। नेता, बाबू, अफसर, सब तेरे आधीन।। सब तेरे आधीन, विदेश यात्रा पर जाते। पत्नी जी को छोड़ साथ तुझको ले जाते।’ काका ने दशकों पहले किसकी पत्नी की पीड़ा को गाया होगा, यह तो अब पता नहीं चल पायेगा, क्योंकि इस बात का जिक्र किसी फाइल में नहीं होगा कि काका कहां-कहां चाय पीने जाते थे और कहां-कहां कविता सुनाते थे।
बहुत करारा व्यंग्य.
अच्छा कटाक्ष
पड़ कर अच्छा लगा .