उम्मीद
दिल को अब भी है उनसे उम्मीद-ए-वफ़ा बहुत
जो भूल गये वादा-ए-वफ़ा को निभाते रहना
कभी दुनिया को पता ना चले हमारी रुसवाई का
तुम दिखावे के लिए ही हाथ मिलाते रहना
कितने तूफ़ानों से गुज़री है जिंदगी मेरी
अजब है फिर भी उम्मीद का दिया जलाते रहना
मेरे गमगीन होने का तुम गम ना करो कोई
आता है “प्रिया” को काँटों के बीच मुस्कुराते रहना ।
v nice
शुक्रीया किशोर कुमार जी
अच्छी ग़ज़ल, प्रिया जी.
शुक्रीया विजय जी