कविता

काश ! कोई होता

दबा हुआ है मन में बहुत कुछ
बहुत कुछ कहना चाहते हैं ये लब
फिर कुछ सोचकर चुप हो जाते हैं
कहीं कुछ ,गलत न कह जायें
कहीं कोई रिश्ता ,दरक न जाये
कहीं लब खुले तो सैलाब न ले आए
काश ! कोई सुनने वाला होता
इस दिल की वीरानी को
समझता इस खामोशी को
मन में दबे हुए लफ्जों को
आँखों में सूखते अश्कों को
काश ! कोई होता ।

— प्रिया

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

4 thoughts on “काश ! कोई होता

  • प्रिया वच्छानी

    शुक्रीया गुरमेल सिंह जी , किशोर कुमार खारेंद्र जी , विजय सिंघल जी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता वच्छानी जी .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत कविता, प्रिया जी.

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