धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

महर्षि दयानन्द और गोवर्धन पर्व

दयानन्द महाभारत काल के बाद से अब तक के वेदों के सबसे महान ऋषि व विद्वान थे। ईश्वरीय ज्ञान वेद में गो की स्तुति की गई है। अतः स्वाभाविक था कि महर्षि दयानन्द भी गो भक्ति करें और उसका प्रचार करें। गो भक्ति क्या है? गो के प्रति आदर की भावना, उसको मातृस्वरूप मानकर उसकी सेवा करना व उसको अपनी सेवा से सन्तुष्ट करना ही गो भक्ति कही जा सकती है। महर्षि के समय में गो भक्ति के स्थान पर गोभक्षण हो रहा था जिसे हमारे विदेशी शासक व उनसे पूर्व के विधर्मी शासक हमें अपमानित करने के लिए करते थे। बताया जाता है कि अकबर व कुछ अन्य शासकों ने गोहत्या पर रोक भी लगाई भी थी। महर्षि दयानन्द के लिए गो हत्या असहनीय व अपमानजनक था। उन्होंने अपनी पीड़ा को “गो-करूणानिधि” नामक अपनी पुस्तक में प्रस्तुत किया है। यदि हम उनकी भावना पर ध्यान दे, तो कह सकते हैं कि गोरक्षा राष्ट्र रक्षा है और गोहत्या राष्ट्र-हत्या है। गाय का प्रश्न केवल धार्मिक ही नहीं है अपितु गाय से हमारा स्वास्थ्य, आयु, शारीरिक शक्ति, बौद्धिक व आत्मिक बल, आर्थिक समृद्धि, धर्म-कर्म, सन्ध्या व अग्निहोत्र, योग-क्षेम, आहार, अन्न उत्पादन, कृषि व खाद, खेतों की जुताई व बुआई, पर्यावरण सन्तुलन, सुरक्षा व प्राणी हित आदि अनेक बातें जुड़ी हुई हैं। दिन प्रति दिन गायों की हत्याओं में वृद्धि हो रही है। देश से गो मांस का निर्यात किया जाता है। यह वैदिक सनातन आर्य धर्मियों के लिए दुःख व अपमान का विषय है। केन्द्र में सम्प्रति भाजपानीत श्री नरेन्द्र मोदी जी की समर्थ सरकार है। हम जानते हैं कि श्री नरेन्द्र मोदी जी व भाजपा के सभी लोग भी गो प्रेमी व गो भक्त लोग हैं और उनकी वही भावनायें हैं जो हमारी हैं। हम आशा करते हैं कि श्री नरेन्द्र मोदी जी शीघ्र ही गोरक्षा के क्षेत्र में अपना अपेक्षित योगदान करेंगे जिससे हिन्दुओं की भावनाओं का आदर होगा।

अनेक तर्कों व प्रमाणों से यह सिद्ध है कि मनुष्य को गो ही नहीं अपितु किसी भी प्राणी का मांस नहीं खाना चाहिये। गो से अनेकानेक लाभ होते हैं। यदि ऐसे उपकारी पशु के प्रति हमारी यह भावना व व्यवहार होगा तो हमें लगता है कि यह संसार अधिक समय तक सुख पूर्वक चल नहीं सकेगा। अपने 40 वर्षों के अध्ययन से हमें लगता है कि कोई भी व्यक्ति जो ईश्वर के सत्य स्वरूप से परिचित है, वह कभी भी गो को कष्ट नहीं दे सकता, मांस खाना तो दूर की बात है। गो को कष्ट देना, मारना व मांस खाना घोरतम अमानवीयता, कृतघ्नता व महापाप है। यदि गो प्रेमी यह ठान लें कि हमें गो हत्या को नहीं होने देना है तो देश में गो हत्या हो ही नहीं सकती। परन्तु कहीं न कहीं गो प्रेमियों में भी कुछ कमियां हैं जिसका कारण देश में गो हत्या का होना है। आईये, गो से होने वाले कुछ मोटे-मोटे लाभों पर दृष्टिपात करते हैं। गो से हमें बछड़े और बछडि़या मिलती हैं। बछड़े बड़े होकर हमारे कृषकों को खेती करने में काम आते हैं और बछडि़यां बड़ी होकर पुनः गाय बन कर हमें व सभी मतो-पन्थों यहां तक की कसाईयों व मांस खाने वालों को भी अपने दुग्ध का अमृत पान कराती हैं। गोदुग्ध पूर्ण आहार हैं। जिसके मुंह में दांत नहीं वह भी गो का दुग्ध पीकर अपना जीवन निर्वाह कर सकता है।

कुछ पेट के रोग ऐसे होते हैं जिसमें भोजन पचता नहीं है। ऐसे लोगों का जीवन भी गो दुग्ध पर ही निर्भर होता है। गोदुग्ध अद्वित्य एवं अमृतमय पेय होने के साथ एक अमृत ओषधि का भी काम करता है। इसके पीने वालों को रोग होते ही नहीं। कैंसर जैसे रोगों को भी होने से यह रोकता है व कैंसर व अन्य असाध्य रोगों को भी आरम्भिक अवस्था में ठीक कर देता है। गो दुग्ध के साथ ही दूध का दही, मक्खन व घृत बनाया जा सकता है। वैदिक संस्कृति का आधार यज्ञ है और यज्ञ का आधार गोघृत है। जिस दिन घी नहीं होगा उस दिन यज्ञ के न होने पर वैदिक संस्कृति नष्ट हो जायेगी। रोगों में वृद्धि होगी। मनुष्यों की आयु घटेगी। मनुष्य हिंसक होगा। जीवन के लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को भूल कर उससे वह सदा-सदा के लिए वंचित हो जायेगा। यह घोर पतन की अवस्था होगी। फिर जो आज हमने पशुओं के साथ किया है वहीं अगले जन्म में हमारे साथ भी निश्चित रूप से होना है। हम अगले जन्मों में बार-बार पशु बनेंगे और जिन पशुओं को हमने मारा और खाया है, वही आज की योनि के पशु हमें मारेंगे और खायेंगे। इस निरन्तर होने वाली हिंसा का एक ही समाधान है कि आज ही इस गोहत्या और सभी प्रकार की पशु व प्राणी हत्याओं को बन्द कर दिया जाना चाहिये और सभी बलिवैश्वदेव यज्ञ करें। बलिवैश्वदेव यज्ञ का आघार पुनर्जन्म और सभी पशुओं को भोजन की सुलभता है। यदि लोग समझदार हो जायें और मांस खाना छोड़ दे तो यह कार्य स्वयं सिद्ध हो जायेगा। हम यह भी कहना चाहते हैं कि गाय का दूध माता के दूध के समान है। दुर्भाग्य से यदि किसी बच्चे की माता की जन्म के एकदम बाद मृत्यु हो जाये तो गाय का दूध पीकर वह शिशु जीवित रह सकता है। दूसरी मुख्य बात यह है कि गाय का भोजन हमसे पृथक है। ईश्वर ने सृष्टि में अपने पुत्र व पुत्री के समान पशुओं के लिए भोजन, भूमि को बिना जोते बोये ही प्रचुर मात्रा में उत्पन्न करता है। गाय हमें वस्तुतः उपकार व परोपकार की साक्षात् शिक्षा देने के कारण हमारी शिक्षिका व गुरू भी है।

हमारे पौराणिक भाईयों ने एक बहुत ही अच्छी कल्पना की है। मृत्यु के बाद जीवात्मा को वैतरणी नदी पार करनी होती है। स्वर्ग में बहने वाली इस वैतरणी नदी में नाव व अन्य कोई साधन नदी को पार करने का नहीं होता है। केवल गाय की पूंछ पकड़कर ही वैतरणी नदी को पार किया जाता है। हमारा विश्वास है कि यद्यपि यह घटना काल्पनिक है, परन्तु यदि यह सत्य मान ली जाये तो वहां गाय केवल उसी व्यक्ति को वैतरणी नदी पार करायेगी जो गोरक्षक व गोपालक रहा होगा। जिसने गोहत्या होते हुए भी मौन साध रखा होगा या वह गोभक्षक होगा, उसे गाय कदापि वैतरणी नदी पार नहीं करायेगी। उसके पास नरक के दुःख भोगने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। अतः हमारे पौराणिक बन्धु अपने कर्तव्य पर विचार करें और अपना आगामी परलोक न बिगाड़ें, वह गोरक्षक व गोपालक बनकर अपने इहलोक व परलोक दोनों को संवारें।

गोवर्धन का पर्व आत्म विश्लेषण करने का पर्व है। गोवर्धन का अर्थ है गायों का संवर्धन अर्थात उनकी संख्या, उनकी नस्ल व उनके दुग्ध आदि पदार्थों में गुणात्मक वृद्धि करना है। यह कार्य गोरक्षा, गोपालन व विज्ञान की सहायता से उन्हें अच्छा चारा खिलाकर, उनके रहने के लिए सुविधाजनक स्थान उपलब्ध कराकर तथा उनके लिए नगर व गांवों में गोचर भूमि उपलब्ध कराकर पूरा किया जा सकता है। हमें यह भी अनुभव होता कि केन्द्र में भाजपा की सरकार के आने के पीछे एक दैवीय कारण गोसंवर्धन को क्रियान्वित किया जाना भी है। हम आशा है कि आने वाले समय में गोसंवर्धन का महान व बड़ा कार्य केन्द्र सरकार द्वारा होगा। ऐसा होने पर ही गोवर्धन पर्व मनाना सार्थक हो सकता है।

-मनमोहन कुमार आर्य

One thought on “महर्षि दयानन्द और गोवर्धन पर्व

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख. हमारे सभी पर्व समाज के हित में कुछ न कुछ अच्छा करने और सन्देश देने के लिए होते थे. लेकिन समय के साथ इनका स्वरुप बिगड़ गया है और विकृतियाँ आ गयी हैं. इन विकृतियों को दूर करना हमारा कर्तव्य है. इस तरह के लेखों से इसमें बहुत सहायता मिलती है.

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