ख्वाब
दिल मेरा बडा वीरान नज़र आता है
सोचती हूं तुम्हें इस में बसा के देखूं
जानती हूं तुमसे वफा की उम्मीद है बेकार
फिर भी चाहा वादा वफा का निभा के देखूं
तुम एक पल न दे पाओगे अपनी जिंदगी का मुझे
फिर भी चाहा अपनी जिंदगी तुम पे लुटा के देखूं
तुम न कभी मेरे अपने थे , न हो , न कभी होगे
फिर भी चाहा एक बार तुम्हें अपना बना के देखूं
जानती हूं तुम बस एक ख्वाब हो “प्रिया ” के
फिर भी चाहा एक झूठा अरमान सजा के देखूं ।
बहुत अच्छी कविता ,
शुक्रीया गुरमेल सिंह जी
बहुत सुन्दर !
शुक्रीया मनजीत कौर जी
v nice
शुक्रीया किशोर कुमार खारेंद्र जी