कविता

ख्वाब

दिल मेरा बडा वीरान नज़र आता है
सोचती हूं तुम्हें इस में बसा के देखूं

जानती हूं तुमसे वफा की उम्मीद है बेकार
फिर भी चाहा वादा वफा का निभा के देखूं

तुम एक पल न दे पाओगे अपनी जिंदगी का मुझे
फिर भी चाहा अपनी जिंदगी तुम पे लुटा के देखूं

तुम न कभी मेरे अपने थे , न हो , न कभी होगे
फिर भी चाहा एक बार तुम्हें अपना बना के देखूं

जानती हूं तुम बस एक ख्वाब हो “प्रिया ” के
फिर भी चाहा एक झूठा अरमान सजा के देखूं ।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

6 thoughts on “ख्वाब

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता ,

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रीया गुरमेल सिंह जी

  • मनजीत कौर

    बहुत सुन्दर !

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रीया मनजीत कौर जी

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रीया किशोर कुमार खारेंद्र जी

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