गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ख़ुशी बेइंतहा जब भी कभी महसूस होती है
तुम्हें भी आँख में तब क्या नमी महसूस होती है ?

कभी फुरकत भी जाँ परवर लगे, होता है ऐसा भी
कभी कुर्बत में कुर्बत की कमी महसूस होती है

मिले शोहरत, मिले दौलत, तमन्ना कोई पूरी हो
ख़ुशी कैसी भी हो, बस दो घड़ी महसूस होती है

कोई अल्हड़ सी लड़की प्यार के क़िस्से सुनाये तो
मुझे भी अपने दिल में गुदगुदी महसूस होती है

खिलें कुछ फूल सहरा में तमन्ना है यही दिल की
मगर ये फ़िक्र मुझको सरफिरी महसूस होती है

उसे आदत है मुझको छेड़ने और तंग करने की
मुझे ये दिल्लगी दिल की लगी महसूस होती है

शिकायत सुनके वो चुपचाप रहता है मगर ‘श्रद्धा’
लबों पे उसके हल्की कँपकँपी महसूस होती है

श्रद्धा जैन

उपनाम -श्रद्धा जन्म स्थान -विदिशा, मध्य प्रदेश, भारत कुछ प्रमुख कृतियाँ विविध कविता कोश सम्मान 2011 सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित कविता कोश टीम मे सचिव के रूप में शामिल आपका मूल नाम शिल्पा जैन है। जीवनी श्रद्धा जैन / परिचय

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल, श्रद्धा जी. आगे भी ऐसी गज़लें पढ़ते रहेंगे, यह आशा है.

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