ग़ज़ल
ख़ुशी बेइंतहा जब भी कभी महसूस होती है
तुम्हें भी आँख में तब क्या नमी महसूस होती है ?
कभी फुरकत भी जाँ परवर लगे, होता है ऐसा भी
कभी कुर्बत में कुर्बत की कमी महसूस होती है
मिले शोहरत, मिले दौलत, तमन्ना कोई पूरी हो
ख़ुशी कैसी भी हो, बस दो घड़ी महसूस होती है
कोई अल्हड़ सी लड़की प्यार के क़िस्से सुनाये तो
मुझे भी अपने दिल में गुदगुदी महसूस होती है
खिलें कुछ फूल सहरा में तमन्ना है यही दिल की
मगर ये फ़िक्र मुझको सरफिरी महसूस होती है
उसे आदत है मुझको छेड़ने और तंग करने की
मुझे ये दिल्लगी दिल की लगी महसूस होती है
शिकायत सुनके वो चुपचाप रहता है मगर ‘श्रद्धा’
लबों पे उसके हल्की कँपकँपी महसूस होती है
उसे आदत है मुझको छेड़ने और तंग करने की
मुझे ये दिल्लगी दिल की लगी महसूस होती है waah
aapke gazal achchhe hote hai ..gazal padhkar kuchh sikhne ko bhi milega
बहुत अच्छी ग़ज़ल, श्रद्धा जी. आगे भी ऐसी गज़लें पढ़ते रहेंगे, यह आशा है.