महादान-छंदमुक्त कविता
महादान
रखना था वचन का मान
दिव्य उपहार कवच कुण्डल का
कर्ण ने दे दिया दान|
लोक हित का रखा ध्यान
दधिची ने दिया अस्थि दान
शस्त्र का हुआ निर्माण
हरे गए असुरों के प्राण|
अनोखे दान को मिला स्थान|
दान कार्य जग में बना महान||
विद्यादान वही करते
जो होते स्वयं विद्वान,
धनदान वही करते
जो होते हैं धनवान,
कन्यादान वही करते
जिनकी होती कन्या सन्तान,
रक्तदान सभी कर सकते
क्योंकि सब होते रक्तवान|
रक्त नहीं होता
शिक्षित या अशिक्षत
अपराधी या शरीफ़
अमीर या गरीब
हिन्दू या ईसाई|
यह सिर्फ़ जीवन धारा है,
दान से बनता किसी का सहारा है|
रक्त कणों का जीवन विस्तार
है सिर्फ़ तीन महीनों का|
क्यों न उसको दान करें हम
पाएं आशीष जरुरतमन्दों का|
करोड़ों बूँद रक्त से
निकल जाए गर चन्द बूँद,
हमारा कुछ नहीं घटेगा
किसी का जीवन वर्ष बढ़ेगा|
मृत्यु बाद आँखें हमारी
खा़क में मिल जाएंगी,
दृष्टिहीनों को दान दिया
उनकी दुनिया रंगीन हो जाएगी|
रक्तदान सा महादान कर
जीते जी पुण्य कमाओ
नेत्र-सा अमूल्य अंग दान कर
मरणोपरांत दृष्टि दे जाओ|
रक्तदान के समान नहीं
है कोई दूजा दान,
नेत्रदान के समान
है नहीं दूजा कार्य प्रधान|
*ऋता शेखर ‘मधु’*
मधु बहन , कविता जागरूपता वाली है , रक्तदान और अंगदान से किसी का कोई नुक्सान नहीं होता लेकिन न जाने कितने लोगों को जीवन दान दे दे. बीस वर्ष से हम दोनों पती पत्नी यहाँ डोनर लिस्ट में हैं . हम ने फ़ार्म पर लिख दिया है कि मरने के बाद हमारा कोई भी अंग इस्तेमाल किया जा सकता है . अगर सभी लोग सोच बदल कर अंग दान करना शुरू कर दें तो बहुत लोगों को जीवन मिल सकता है .
बहुत आभार…इसे पढ़कर एक व्यक्ति भी महादान के लिए प्रेरित हों तो रचना सार्थक हो जाएगी|
नेकी भरे कार्य के लिए आपको साधुवाद !!
बहुत सुन्दर और प्रेरक कविता.
बहुत आभार !!