कांग्रेस के क्या लगते हैं राबर्ट वाड्रा
सत्ता चली गई लेकिन नशा नहीं गया। राबर्ट वाड्रा ने एक सवाल के जवाब में पत्रकार के साथ बदसलूकी की, उसका कैमरा फेंक दिया। जो भी हुआ, उसपर माफ़ी मांगने की नैतिक जिम्मेदारी स्वयं वाड्रा की थी। उसके बाद यह जिम्मेदारी क्रमवार प्रियंका, सोनिया और राहुल की बनती है क्योंकि वाड्रा उनके परिवार के अंग हैं। लेकिन राजपरिवार ने इस घटना पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा। एक अदने पत्रकार से राजपरिवार के सदस्य ने एक छोटी-सी बदसलूकी कर ही दी, तो कोई पहाड़ तो नहीं टूट गया? यह तो उस परिवार का विशेषाधिकार है।
अप्रिय सवालों के जवाब में स्व. नेहरू तो पत्रकारों पर हाथ भी उठा देते थे। इन्दिराजी मीडिया, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और निष्पक्ष पत्रकारिता के प्रति सर्वाधिक असहिष्णु थी। आपात्काल लगाकर लोकतन्त्र का गला घोंटने के अतिरिक्त उन्होंने जो प्रेस सेंसरशीप लागू की वह भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय था जिसने स्वतंत्र लेखन के अपराध में अंग्रेजों द्वारा स्व. बाल गंगाधर तिलक को देश निकाले और अंडमान की जेल में भेजने की घटना की याद सहज ही दिला दी थी। आपात्काल में देश के प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ बड़ी संख्या में पत्रकार भी जेल में ठूंस दिए गए थे। पत्रकार इन्दिरा गांधी की नीयत से शुरु में पूरी तरह वाकिफ़ नहीं थे।
प्रेस सेन्सरशीप और इमर्जेन्सी के विरोध में कुछ अखबारों ने २६ जून, १९७५ को प्रकाशित अपने संस्करण के पहले पेज पर कोई समाचार नहीं छापा। पूरे पेज को काले रंग से लीप दिया। उन्हें अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब उसी दिन संपादक/प्रकाशक जेल भेज दिये गये। बाद में पत्रकारों ने अपनी गलती सुधारी और बढ़-चढ़कर इमर्जेन्सी के समर्थन में कसीदाकारी की। जिस पत्र ने जितने ज्यादा कसीदे काढ़े, उसे उतना ही ज्यादा सरकारी विज्ञापन मिले। सोनिया तो मीडिया से मिलने में वैसे ही परहेज़ करती हैं, राहुल बाहें चढ़ाकर कई बार वाड्रा जैसी हरकतें कर चुके हैं। इसलिये मुझे वाड्रा की बदसलूकी पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। बेचारा वैसे ही लैंड-डील के खुलासे से मानसिक रूप से परेशान है। अब न तो दिल्ली में और ना ही हरियाणा-राजस्थान में उसकी सास की सरकारें हैं। ऐसे में असहज करनेवाले पत्रकारों के सवाल! बेचारा आपा खो बैठा, तो क्या गलती की?
आश्चर्य तब होता है, जब कांग्रेस के राजपरिवार के दामाद के इस कृत्य पर पार्टी के नेताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगी जाती है। सुन्दर युवती अमृता राय के अवैध पति उम्रदराज़ महामहिम दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले दामादजी की बदसलूकी के लिए माफ़ी मांगी। फिर तो माफ़ी मांगनेवालों में होड़ मच गई। ताज़ा नाम कांग्रेस के संगठन सचिव दुर्गा दास कामत का है। उन्होंने गोवा में दामादजी की बदसलूकी के लिये कांग्रेस की ओर से माफ़ी मांगी है। समझ में नहीं आता है कि राबर्ट वाड्रा कांग्रेस के क्या हैं – अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव-महासचिव या कोई अन्य आफ़िस बियरर? फिर पार्टी की ओर से माफ़ी मांगने का क्या औचित्य है? वंशवाद के चमचों की चाटुकारिता का इससे बड़ा उदाहरण शायद ही मिले!
अगर रॉबर्ट बराडा की कोई पौलिटिकल हैसीअत है नहीं वोह कांग्रस का किया लगता है ? फिर दिग्विजय सिंह भी कियों बोलता है ? अगर मिडिया से बदसलूकी की वजह से कोई कानूनी नुक्ता है जिस की धारा पर बराडा पर केस चलाया जा सकता है तो फिर देरी कियों ? let the law take its own course.
अच्छा लेख. जिस तरह पूरी कांग्रेस पार्टी रोबर्ट वाड्रा के बचाव में उतर आई है, वह निर्लज्जता की पराकाष्ठा है. एक ओर यह कहना कि उसका कोई सामाजिक जीवन नहीं है, दूसरी ओर तमाम सुवुधएं भोगना और पार्टी द्वारा चापलूसी. इससे सिद्ध होता है कि कांग्रेस वास्तव में शर्म-निरपेक्ष पार्टी है.