“श्रुति-मन्थन” ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय
‘श्रुति-मन्थन’ लगभग 750 पृष्ठों का भव्य ग्रन्थ है जिसमें जीवन को सन्मार्ग पर प्रेरित करने व उसे सफल बनाने संबंधी पर्याप्त सामग्री विद्यमान है। ग्रन्थ का लोकार्पण देश के विख्यात विद्वान एवं निवर्तमान शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरी जी तथा प्रो. सुभाष विद्यालंकार जी ने 2 नवम्बर, 2014 को हरिद्वार में आयोजित एक भव्य समारोह में किया था। ग्रन्थ की भव्य साज-सज्जा व आकर्षक मुख पृष्ठ को देखकर मन प्रसन्न व आनन्दित हो जाता है। मुखपृष्ठ व अन्तिम कवर पृष्ठ पर वेदमूर्ति आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी के भव्य चित्र हैं। अन्दर के पृष्ठ आचार्य जी पर श्रद्धांजलि एवं उनके संस्मरणों से सम्बन्धित लेख, कवितायें व चित्र आदि के रूप में हैं। अनेक अध्यायों में, प्रकाशकीय, पुरोवाक् व शुभाशंसा से आरम्भ होकर इस ग्रन्थ के प्रथम 45 पृष्ठों में “प्रणतिः” के अन्तर्गत आचार्य जी पर संस्कृत व हिन्दी की कवितायें हैं। इसके बाद आचार्य जी की जीवन यात्रा पर डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी द्वारा लिखित सामग्री है। इसके अगले अध्याय ‘अतीत के झरोखे’में आचार्यजी का सान्निध्य प्राप्त विद्वानों एवं सुधीजनों की तूलिका के अन्तर्गत 37 लेख व श्रद्धांजलियां हैं।
‘स्मृति-सौरभ’ अध्याय आचार्य जी के परिजनों द्वारा प्रस्तुत 34 लेखों का संकलन है। ‘स्मृतियों के वातायन से’ अध्याय के अन्तर्गत 29 लेख शिष्य परम्परा द्वारा समर्पित श्रद्धा-सुमन नाम से हैं। इसके बाद आचार्यजी का पत्राचार है जिसमें प्रथम वह पत्र है जो कुलपिता स्वामी श्रद्धानन्द जी का बालक रामनाथ को आशीर्वाद पत्र है। अगले अध्याय ‘पर्यालोचन’ में 23 विद्वान शिष्यों द्वारा आचार्य जी के कार्यों का मूल्याकंन व महत्ता सूचक लेख हैं। ‘श्रुति-सौरभ’ अध्याय में आचार्यप्रवर के 14 लेखों का संकलन हैं जिसका पहला लेख ‘वेदों में सौर ऊर्जा का वैज्ञानिक प्रयोग’ एवं दूसरा ‘वेदों का चमत्कारिक मनोबल’ है। अगले ‘विचार-मंथन’ अध्याय में 9 लेखों का संकलन है। अन्तिम अध्याय ‘काव्यामृतम्’ नाम से है जिसमें आचार्य जी कृत 8 काव्यों का पृष्ठ 715 से 723 तक संकलन है। एक परिशिष्ट ‘वेदमूर्ति आचार्य रामनाथ वेदालंकार जन्मशती-वर्ष शुभारम्भ महोत्सव का आरम्भ’ नाम से आचार्य जी के पौत्र श्री स्वस्ति अग्रवाल द्वारा लिखित रिपोर्ट है। ग्रन्थ के अन्त में 44 पृष्ठ आचार्य जी जुड़े पारिवारिक जनों एवं मुख्य-मुख्य अवसरों के रंगीन चित्र आदि दिये गये हैं। इसके अतिरिक्त पुस्तक में महर्षि दयानन्द सरस्वती एवं स्वामी श्रद्धानन्द जी के ग्रन्थ के आरम्भ में पूरे पृष्ठ के दो भव्य एवं आकर्षक चित्र हैं। हमारा विचार है कि आचार्य जी से किसी भी रूप में जुड़े व्यक्ति के पास यह संग्रहणीय ग्रन्थ अवश्य होना चाहिये।
यद्यपि ग्रन्थ का मूल्य रूपये 600.00 है परन्तु प्रकाशक द्वारा यह ग्रन्थ मात्र 300 रूपयों में उपलब्ध कराया जा रहा है। डाक व्यय की छूट भी दी जा रही है। पाठक को ग्रन्थ के प्रकाशक “श्री घूड़मल प्रहलादकुमार आर्य न्यास, ब्यानिया पाडा, हिण्डोन सिंटी, राजस्थान” को मोबाइल संख्या 9414034072 पर फोन करना है या इसी पते पर डाक से पत्र भेजकर निवेदन कर सकते हैं। पुस्तक प्राप्ति का सुनहरा अवसर निकल न जाये, अतः इसे शीघ्र प्राप्त कर लें। बाद में यह अनुपलब्ध भी हो सकता है और पाठक को विस्मृति होने से वह इसके लाभ से वंचित भी हो सकता है। अतः शीघ्रता कर पुस्तक प्राप्त करने का प्रयास करें। यह हमारा हार्दिक परामर्श एवं निवेदन है।
-मनमोहन कुमार आर्य