तीन मुक्तक
हमने इंसान को इन्सान तोड़ते देखा
दरमियां दिलों के दीवार जोड़ते देखा
भेस बदल कर घूमे ‘मधुर’ यहाँ वहाँ
कितनों को मन का खण्डहर फोड़ते देखा
सपने नन्ही आंखों में दम तोड़ते देखा
कुम्हलाये अरमानों को हाथों से मरोड़ते देखा
उड़ने को बेकरार स्वच्छंद नभ में ‘मधुर’
आजाद पंछी को पिंजरे में छोड़ते देखा
नन्हें बाजुओ को दुखों की चादर ओढते देखा
मासूम बाल मन को बाजारों में मोड़ते देखा
छिन गए खिलौने नन्हें हाथों से ‘मधुर’
बेबस हुए बचपन को दम तोड़ते देखा
— मधुर परिहार
अच्छे मुक्तक. और अच्छा लिखने की कोशिश कीजिये.