****प्रेम है दिव्य प्रकाश****
आदि ना अंत
प्रेम अनंत
हम सब की
आत्मा में बसा एक
दिव्य प्रकाश है प्रेम
जिसकी लौह छेनी सी
प्रबल,प्रखर किरणें
मन में स्थित
अज्ञान रुपी शिला को
नेस्तनाबूद कर देती है
ज्ञान के आलोक में
निश्चय—अनिश्चय
के मध्य संशय के धुंध
छट जाते
भट्का मन एक
दिशा पाता
सुख — दुख
तृप्ति — तृष्णा
अधिकार –कर्तव्य के बीच
प्रेम वह आयाम है
जहां जिंदगी
हंसती -झूमती -गाती है
मन में
आशा, उत्साह,उमंग
का सृजन होता
विश्वास और निश्छल भावनाओं के
समर्पण से दिल में
प्रेम की लौ
सतत जलती रह्ती है
किन्तु
क्रोध ,अविश्वास ,बंधनो से
प्रेम का प्रकाश
मलिन हो जाता
इस नश्वर जगत मे
प्रेम ही एकमात्र शाश्वत
अनुभूति है
जिसे पाकर कुम्हलाया जीवन
फिर से हरा हो जाता
मंदिर ,मस्जिद
है निराधार
प्रेम ही जीवन का है आधार
तो क्यों ना दिल में
सिर्फ प्रेम संजोए
आखिर मनुष्यता की
पहचान तो प्रेम ही है !!
— डॉ भावना सिन्हा
nice poem dr bhawana sinha ji ..प्रेम ही एकमात्र शाश्वतअनुभूति है
जिसे पाकर कुम्हलाया जीवन
फिर से हरा हो जाता
मंदिर ,मस्जिद
है निराधार
प्रेम ही जीवन का है आधार
तो क्यों ना दिल में
सिर्फ प्रेम संजोए
आखिर मनुष्यता की
पहचान तो प्रेम ही है !!
बहुत अच्छी कविता, डॉ साहिबा !
डाक्टर भावना जी , कविता बहुत सुन्दर है .