जन्मदिन
ये लो नये कपड़े और कल जल्दी उठकर तैयार हो जाना तुम्है मेरे साथ चलना है।एक पैकेट छोटू की तरफ फैंकते हुऐ संगीता देवी ने कहा।
संगीता देवी एक समाज सेविका थी और कल उन्हें बाल दिवस पर एक सभा को संबोधित करने जाना था।छोटू कपड़े पाकर खुश हुआ क्यूंकि उसका मानना था कि कल उसका जन्मदिन था नये कपड़े तभी तो उसे हर साल इसी दिन पर मिलते है बाकि के दिन तो सौरभ बाबा के उतारे पुराने कपड़े ही पहनता है।
छोटू को अपना जन्मदिन याद नही था क्यूंकि बहुत छोटी उम्र मे उसके माता पिता चल बसे थे।पङोस मे रहने वाले दिनू काका के बेटे बहू उसे शहर ले लाये थे।घर का करीब करीब सारा काम करता था छोटू बस पूरे साल में यही एक दिन मिलता था जब उसे काम करने को नही मिलता था क्यूंकि उसे अपनी मालकिन के साथ जाना होता था ।संगीता देवी को दुनिया को ये दिखाना भी तो होता था कि इस अनाथ बच्चे को उन्होने गोद लेकर एक अच्छी परवरिश दी है।
सच्चाई कुछ भी हो छोटू को बङा पंसद था ये दिन क्यूंकि उसके हिसाब से नये कपड़े पहनकर यूं घूमना मानो उसका जन्मदिन मनाना था अक्सर ये किसी के जन्मदिन पर ही तो होता है
अच्छी लघुकथा. आपने तथाकथित समाजसेविकाओं के चेहरे पर से नकाब उतार दी है.
सारदा बहन , कहानी तो ऑंखें नम करने वाली है . बाल दिवस तब ही कामयाब माना जाएगा जब यह बच्चे गरीबी से उठेंगे . जो लोग बच्चों से काम लेते हैं और दुनीआं को कुछ और दिखाते हैं वोह देश के गद्दार हैं .