बच्चों का मन
बहुत ही आसान है
बच्चों की मन को समझना
पर..
समझना कौन चाहता है?
कभी हम
अपने तर्कों से
उन्हें खामोश कर देते है
तो कभी
अपने अधिकार से चुप
कभी अपना दंभ दिखाते है
तो कभी अहम
कभी कोशिश ही नही की
उनके मन की बात
समझने की
वो भी तो चाहते है
अपनी बात कहना
पर तजुर्बे और नासमझी का
तकाजा देकर
उन्हें चुप करा देते है
वो नन्हा मन भी
उङना चाहता है
अपने पंखो के साथ
बिखरना चाहता है
सदा ये भी तो नही
कि हम सही हो
फिर क्यूं
उनसे सदा सही की ही
उम्मीद की जाये
क्यूं आपने विचार ही
उनपर थोपे जाये
उङने दो उन्हें
खुले आकाश मे
स्वतन्त्र पंछी की तरह
विचरने दो उन्हें
स्वयं को
तभी मदमस्त होकर
वो जी पायेंगे
हम से ज्यादा
पाने की चाहत है उनमे
अपना लक्ष्य वो
खुद ही बना जायेंगे
पंछी है वो इसी डाल के
न सोचो ज्यादा
आखिर मुकाम मे तो
अपने आप इसी
अनुभव पर चले आयेंगे
एकता जी , कविता में बहुत कुछ कह दिया . मैं बचपन से ही बहुत भावुक और बात बात को सोचने वाला था लेकिन मेरे पिता जी मुझ को इतना डांटते थे और कभी कभी पीटते भी थे कि मैं उन से बहुत डरता था . यह डर का नतीजा यह हुआ कि सारी उम्र मेरा उन से पियार नहीं बन सका . मेरे बच्चे भी हो गए थे लेकिन वोह संकोच गिया नहीं था . इस लिए मैंने पहले ही सोच लिया था कि मैंने अपने बच्चों को भरपूर पियार देना है और ऐसा ही किया . अब मेरे बच्चे मेरे साथ दोस्तों जैसे हैं , हर बात मुझ से शेअर करते हैं . मेरा सोचना यह है कि बच्चों को छोटा नहीं सोचना चाहिए , उनकी हर बात धियान से सुन्नी चाहिए . हर बच्चे की नेचर इलग्ग होती है और उस के अनकूल ही उस से विवहार की जरुरत होती है .
बहुत अच्छी कविता, एकता जी. बच्चों के मन को जीतना बहुत कठिन है. लेकिन एक बार ऐसा हो जाने पर सभी कार्य सिखाना आसान हो जाता है. मुझे इसका अनुभव है, क्योंकि मैं यहाँ एक छात्रावास के बच्चों की देखभाल के कार्य में रहता हूँ.