कविता

बचपन

बाल दिवस पर विशेष 

कितने प्यारे होते हैं
बचपन के वो दिन
सब संग हंसना खेलना
मिलते ही दोस्त बना लेना
न दुनियादारी की चिंता
न अपने-पराये का भरम
वहीं लड़ना वहीं माना जाना
छुपम-छुपाई , लंगडी खेलना
कितने सारे खेल होते थे
तब तो दिलों से मेल होते थे
उन्मुक्त जीवन जीते थे
दिल से मुस्कराया करते थे
मुस्कराते तो अब भी हैं
पर अब मुस्कान ज़रा भारी है
हसते तो हैं पर जैसे ,लाचारी है
होंठों पर हसी और
दिमाग में दुनियादारी है
खुलकर मिलना भूल गये हैं
दुनियादारी निभाते हुए अब
मन से जीना भूल गये हैं
काश ! वो दिन फिर से लौट आयें
जो बचपन पीछे छूटा
उसे फिर से जी पायें ,,,,,,

सभी मित्रों को बाल दिवस की शुभकामनाएं

— प्रिया

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

2 thoughts on “बचपन

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रीया विजय भाई जी

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